पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१९४

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सांख्यदर्शन।
 

आश्चर्यकारिणी विचित्रता है कि वेदोंको तो वे सब ही मानते हैं, परन्तु वेदोंकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें उनमेंसे किन्ही दो ग्रन्थोंकी भी एकता नहीं दिखलाई देती।

ऋग्वेदके पुरुषसूक्तमें लिखा है कि वेदपुरुष यज्ञसे उत्पन्न हुआ। अथर्ववेदमें एक जगह कहा है कि ऋक्-यजुः-साम स्तम्भसे उत्पन्न हुए हैं, दूसरी जगह कहा है कि वेदोंका जन्म इन्द्रसे हुआ है, तीसरी जगह कहा है कि ऋग्वेद कालसे उत्पन्न हुआ है और चौथी जगह कहा है कि वेद गायत्रीमें निहित है। शतपथ ब्राह्मणमें कहा है कि अग्निसे ऋक्, वायुसे यजुप, और सूर्यसे सामवेदकी उत्पत्ति हुई है । छान्दोग्य उपनिपत् और मनुमें भी इसी प्रकार कहा है। शतपथब्राह्मणमें अन्यत्र लिखा है कि वेदको प्रजापतिने बनाया है। इसी ग्रन्थमें और एक जगह लिखा है कि प्रजापतिने वेदसहित जलमें प्रवेश किया। जलसे अण्डा और अण्डेसे पहले तीन वेद उत्पन्न हुए। एक जगह और लिखा है कि वेद महाभूत (ब्रह्मा) का निःश्वास है। तैत्तिरीय ब्राह्मणमें कहा है कि वेद प्रजापतिके श्मश्रु हैं। विष्णुपुराणमें कहा है कि वेद ब्रह्माके मुखसे उत्पन्न हुए। महाभारतके भीष्मपर्वमें कहा है कि सरस्वती और वेद विष्णुने मनसे सृजन किये और शान्तिपर्वमें सरस्वतीको वेदमाता कहा है। वेदमन्त्र, ब्राह्मण, उपनिषत् , स्मृति, पुराग और इतिहासमें वेदोपत्तिके विष- यमें इस प्रकार लिखा है। देखा जाता है कि इन सब ग्रन्थोंमें वेदोंका सृष्टत्व और पौरुषेयत्व प्रायः सर्वत्र ही स्वीकृत हुआ है-अपौरुषेयत्व कदाचित् ही कहीं बतलाया गया है। परन्तु पीछेके प्रायः सब ही टीकाकार और दार्शनिक विद्वान् अपौरुषेयत्ववादी हैं। उन लोगोंके मत ये हैं:—

सायनाचार्यने ऋग्वेदकी टीकामें कहा है कि वेद अपौरुषेय है। क्योंकि उसे किसी मनुष्यने नहीं बनाया। माधवाचार्य तैत्तिरीय यजुर्वेदकी टीकामें कहते हैं कि जिस तरह काल आकाशादि नित्य हैं, उसी तरह वेद भी नित्य हैं। ब्रह्माको उन्होंने वेदवक्ता स्वीकार किया है। मीमांसक कहते हैं कि वेद नित्य और अपौरुषेय है। शब्द नित्य है, इस लिए वेद भी नित्य है। शंकराचार्य भी इसी मतको मानते हैं। नैयायिक इसका प्रतिवाद करते हैं और कहते हैं—मन्त्र और आयुर्वेदके समान, ज्ञानी व्यक्तिके वचन प्रामाण्य होते हैं, इसी लिए वेदोंकी भी प्रमाणता माननी चाहिए। वैशेषिकोंका मत है कि वेद ईश्वरप्रणीत है कुसुमांजलि-कर्ता उदयनाचार्यका भी यही मत है।

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