पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१९७

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बंकिम-निबन्धावली—
 

वेदको हम क्यों मानें ? इस प्रश्नकी विचारभूमिमें मीमांसक जैमिनिको महारथी और नैयायिक गौतमको उसका प्रतिद्वन्द्वी समझना चाहिए। ऐसा नहीं है कि नैयायिकोंको वेद मान्य नहीं है । नहीं वे वेदको मानते हैं, परन्तु मीमांसक जिन जिन कारणोंसे वेदको मानते हैं, नैयायिक उनको अग्राह्य करते हैं। मीमांसक कहते हैं कि वेद नित्य और अपौरुषेय है। नैयायिक कहते हैं कि वेद आप्तवाक्य मात्र है। नैयायिकोंने जिन युक्तियोंसे मीमांसकमतका खण्डन किया है, उनका सारमर्म माधवाचार्यके सर्वदर्शन संग्रहपरसे नीचे दिया जाता है:—

मीमांसक कहते हैं कि सम्प्रदायाविच्छेदसे वेदकर्ता अस्मर्यमान है । सब बातें लोकपरम्परासे चली आ रही हैं, किन्तु यह किसीको भी स्मरण नहीं है कि वेदको किसने बनाया । इसपर नैयायिक कहते हैं कि प्रलय कालमें सम्प्रदायविच्छेद हो गया था। इस समय जो वेदका प्रणयन स्मरण नहीं है, सो इससे कुछ यह प्रमाणित नहीं होता है कि प्रलयके पहले वेद प्रणीत नहीं हुआ था । और यह भी तुम प्रमाण नहीं कर सकोगे कि वेदका कर्ता कभी किसीको स्मृत ही न था । वे और भी कहते हैं कि वेदवाक्य कालि- दासादिके वाक्योंके समान ही वाक्य हैं । अतएव वेदवाक्य भी पौरुषेय वाक्य हैं । वाक्यत्व हेतुसे, मन्वादि वाक्योंके समान, वेदवाक्योंको भी पौरुषेय कहना होगा । मीमांसक कहते हैं कि जो वेदाध्ययन करता है, उसके पहले उसके गुरुने अध्यययन किया था, उसके पहले उसके गुरुने और उसके पहले उसके गुरुने; इस प्रकार जहाँ अनन्तपरम्परा है वहाँ वेद अनादि है । नैयायिक कहते हैं कि तब महाभारतादिके सम्बन्धमें भी इसी प्रकार गुरुपरम्परा बतलाई जा सकती है और वे भी अनादि सिद्ध किये जा सकते हैं। यदि कहो कि महाभारतके कर्ता जो व्यास हैं वे स्मर्यमान हैं, तो वेदके सम्बन्धमें भी कहा जा सकता है कि-" ऋचःसामानि जज्ञिरे । छन्दांसि जज्ञिरे तस्मात् यजुस्तस्मादजायत ।" इस तरह पुरुषसूक्तमें वेदकर्ता भी निर्दिष्ट है। मीमांसक कहते हैं कि शब्द नित्य है, इस लिये वेद भी नित्य है।परन्तु शब्द नित्य नहीं है। क्योंकि शब्द सामान्यत्ववशतः घटवत् अस्म- दादिके बाह्येन्द्रियग्राह्य है। मीमांसक उत्तर देते हैं कि गकारादि शब्द सुनते ही हमको प्रत्यभिज्ञान होता है कि यह गकार है; अतएव शब्द नित्य है ।

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