पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बंकिम-निबन्धावली—
 

मनुष्य बहुत ही थोड़ी बातोंमें स्वयं प्रत्यक्ष कर सकता है। अधिकांश ज्ञान अनुमानपर ही निर्भर है। अनुमान शक्ति न होती तो हम प्रायः कोई कार्य न कर सकते । विज्ञान दर्शन आदि अनुमानके ऊपर ही बने हैं।

किन्तु जैसे कोई भी मनुष्य सब विषयोंका स्वयंप्रत्यक्ष नहीं कर सकता, वैसे ही कोई व्यक्ति सब तत्त्वोंको स्वयं अनुमान करके सिद्ध नहीं कर सकती। ऐसे अनेक विषय हैं कि अनुमान करके उन्हें जाननेमें जितने परिश्रमकी आवश्यकता है उतना परिश्रम एक मनुष्य अपने जीवनकाल भरमें कर ही नहीं सकता। ऐसे अनेक विषय हैं कि उन्हें अनुमानके द्वारा सिद्ध करनेके लिए जिस विद्या, जिस ज्ञान, जिस बुद्धि और जिस तत्पर- ताका प्रयोजन है वह विद्या, बद्धि, ज्ञान और तत्परता अधिकांश लोगोंमें नहीं देखी जाती। अतएव यह मानना पड़ेगा कि ऐसे अनेक अत्यन्त प्रयोजनीय विषय हैं कि बहुत लोग स्वयं प्रत्यक्ष या अनुमानके द्वारा उन्हें जान नहीं सकते । ऐसे स्थानपर हम लोग क्या करते हैं? जिसने उस विषयको स्वयं प्रत्यक्ष किया है या उसका अनुमान किया है, उसकी बात सुनकर उसपर विश्वास करते हैं। इटलीदेशके उत्तरमें जो 'आल्पस' नामकी पर्वतश्रेणी है उसे तुमने प्रत्यक्ष नहीं देखा। किन्तु जिन्होंने देखा है उनकी लिखी पुस्तक पढ़कर तुमको उसका ज्ञान प्राप्त हुआ। परमाणुमात्र अन्य परमाणुओंके द्वारा आकृष्ट होते हैं। यह प्रत्यक्षका विषय नहीं हो सकता. और तुम भी इसे गणनाके द्वारा सिद्ध नहीं कर सके। इस कारण तुमने 'न्यूटन' की बातपर विश्वास करके यह ज्ञान प्राप्त किया।

न्याय, सांख्य आदि आर्योंके दर्शनशास्त्रों में इसे एक तीसरा प्रमाण माना है। यह शब्द-प्रमाण है। उक्त दर्शनकारोंकी समझमें वेद आदिकी प्रामा- णिकता इसी प्रमाणपर निर्भर है। आप्तवाक्य या गुरुका उपदेश साधारणतः विश्वासके योग्य है। आर्य लोगोंके मतसे यह भी एक स्वतन्त्र प्रमाण है। इसीका नाम शब्द-प्रमाण है।

किन्तु चार्वाक आदि कुछ आर्य दाशनिक इसे प्रमाण नहीं मानते। यूरो- पके दार्शनिक भी इसे एक स्वतन्त्र प्रमाण माननेके लिए तयार नहीं हैं।

साधारणतः देखा जाता है कि सबकी बातोंपर विश्वास करना अकर्तव्य है। यदि कोई प्रसिद्ध मिथ्यावादी आकर कहे कि वह जलमें आग जलते

२६