पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/४८

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मनुष्यत्व क्या है?
 

कर सकता है ? दान पुण्यकर्म अवश्य है, किन्तु यह कोई नहीं कह सकता कि ऐसे दानसे परलोकका कुछ उपकार होगा । किन्तु जो अर्थाभावके कारण दान नहीं कर सका, किन्तु दान न कर सकनेके कारण खिन्न है, उसका इस लोकमें और परलोक अगर हो तो वहाँ भी, सुखी होना संभव है।

अतएव मनोवृत्तियोंके जिस अवस्थामें परिणत होनेसे पुण्यकर्म उसके फलके रूपमें आप ही निष्पन्न होता है, परलोक अगर हो तो वही परलोकमें भी शुभप्रद है, यह बात मानी जा सकती है। परलोक हो चाहे न हो, इस लोकमें वही मनुष्य-जीवनका उद्देश्य है । किन्तु केवल वह अवस्था ही मनुष्य-जीवनका उद्देश्य नहीं हो सकती । जैसे कुछ मानसिक वृत्तियोंकी चेष्टा कर्म है और जैसे उन वृत्तियोंके अच्छी तरह परिमार्जित और उन्नत होनेसे स्वभावतः शुभ कर्मके करनेकी प्रवृत्ति होती है वैसे ही और भी कुछ वृत्तियाँ हैं । उनका उद्देश्य किसी तरहका कार्य नहीं है—ज्ञान ही उनकी क्रिया है । कार्यकारिणी वृत्तियोंका अनुशीलन जैसे मनुष्य-जीवनका उद्देश्य है वैसे ही ज्ञानोपार्जनकी वृत्तियोंका अनुशीलन भी जीवनका उद्देश्य होना उचित है । वास्तवमें अगर देखा जाय तो देख पड़ेगा कि सब प्रकारकी मानसिक वृत्तियोंका सम्यक् अनुशीलन, संपूर्ण स्फूर्ति, यथोचित उन्नति और विशुद्धि ही मनुष्य-जीवनका उद्देश्य है।

यह बात नहीं है कि ऐसे मनुष्योंने जगतमें जन्म ही न लिया हो जिन्होंने केवल इसी उद्देश्यका अवलंबन कर, सम्पत्ति आदिको उपयुक्त घृणा दिखा- कर अपना जीवन बिताया हो । ऐसे लोगोंकी संख्या बहुत कम होनेपर भी उनके जीवनचरित मनुष्योंको अमूल्य शिक्षा दे सकते हैं । जीवनके उद्देश्यके सम्बन्धमें ऐसी शिक्षा और किसी तरह नहीं मिल सकती। नीति-शास्त्र, धर्मशास्त्र, विज्ञान, दर्शन आदि सबकी अपेक्षा यही प्रधान शिक्षा है । दुर्भाग्यवश ऐसे लोगोंके जीवनके गूढतत्व अपरिज्ञेय हैं । केवल दो आदमी अपना जीवनचरित आप लिखकर रख गये हैं,—एक गेटे और दूसरे जॉन स्टुअर्ट मिल।

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