पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/५७

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बंकिम-निबन्धावली—
 

होते हैं। अगर दोनों आदमी अँगरेजी जानते हैं तो बातचीत भी अँगरेजीमें की जाती है। कभी सोलहों आने अँगरेजीमें, और कभी बारह आने अँगरेजीमें बातचीत होती है। बातचीत चाहे जिस भाषामें हो, लेकिन चिट्ठीपत्री कभी बंगलामें नहीं होती। हमने अबतक कभी यह नहीं देखा कि कुछ भी अँगरेजी जाननेवाले दो आदमी बंगलामें चिट्ठीपत्री लिखते हों। हमें अब भी यह आशा है कि विशेषरूपसे दुर्गापूजाके मन्त्र आदि भी अंगरे- जीमें (तर्जुमा करके ) ही पढ़े जायेंगे!

इसमें विस्मयकी बात कुछ भी नहीं है। एक तो अँगरेजी राजभाषा है— धन कमानेकी भाषा है, दूसरे उसमें बहुतसी विद्याओंका समावेश है, वही ज्ञानोपार्जनका द्वार है। बंगालियोंने उसे लड़कपनसे पढ़कर दूसरी मातृभाषाका स्थान दे रक्खा है। खासकर अँगरेजीके इस बहुल प्रचारका कारण यही है कि अँगरेजीमें अपना वक्तव्य कहे बिना उसे अँगरेज नहीं समझते। अँगरेजोंके समझे बिना मान-मर्यादा नहीं होती। अँगरेजोंमें मान न मिला तो और लोगोंसे मान मिलना या न मिलना बराबर है। अँगरेजोंने जिसे नहीं सुना वह जंगलमें रोनेके समान है, अँगरेजोंने जिसे नहीं देखा वह राखमें होम करनेके समान निष्फल है।

हम अँगरेजी या अँगरेजोंके द्रोही नहीं है। हमारा भी यह मत है कि अंगरेजोंसे इस देशका जितना उपकार हुआ है उसमें अँगरेजीकी शिक्षाका प्रचार ही प्रधान है। अनन्तरत्नप्रवसिनी अँगरेजी भाषाका जितना अनुशीलन हो उतना ही अच्छा है। हमारी यह भी सम्मति है कि समाजकी भलाईके लिए कुछ एक सामाजिक कार्योंका राजभाषामें ही सम्पन्न होना आवश्यक है। हमारी बहुतसी ऐसी बातें हैं जिन्हें हमें राजपुरुषोंको समझाना होगा। वे सब बातें अँगरेजीमें ही कहनी पड़ेंगी। ऐसी बहुतसी बातें हैं जो केवल बंगालियोंके लिए ही नहीं हैं, सारे भारतवर्षको वे बातें सुनानी पड़ेंगी। उन सब बातोंको अँगरेजीमें कहे बिना सारा भारत नहीं समझ सकता । भारतकी अनेक जातियोंका मत सलाह और उद्योग जब तक एक न होगा, तबतक भारतकी उन्नति नहीं हो सकती। यह मत, सलाह और उद्योगकी एकता केवल अँगरेजीके ही द्वारा हो सकती है। क्यों कि इस समय संस्कृत

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