पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/६३

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बंकिम-निबन्धावली—
 

कही हुई तीन श्रेणियाँ ले लेनेसे ही काम चल सकता है । यथा एक दृश्य- काव्य, अर्थात् नाटक आदि। दूसरे आख्यानकाव्य, अथवा महाकाव्य । रघु- वंशकी तरह वंशावलीके उपाख्यान, रामायणकी तरह व्यक्तिविशेषके चरित, माघकी तरह घटना-विशेषके विवरण—सभी इसके अन्तर्गत हैं। वासवदत्ता, कादम्बरी आदि गद्यकाव्य और आधुनिक उपन्यास इसी श्रेणीके अन्तर्गत हैं। तीसरे खण्डकाव्य हैं।

देखा जाता है कि इन त्रिविध काव्योंके रूपमें बहुत विषमता है। किन्तु रूपकी विषमता यथार्थ विषमता नहीं है। दृश्यकाव्य सर्वत्र साधारणतः कथोपकथनके रूपमें ही चित होते हैं और रंगभूमिमें उनका अभिनय हो सकता है । किन्तु यह बात नहीं है कि जो कुछ कथोपकथनके रूपमें हो और जिसका अभिनय किया जा सके, वही नाटक या उस श्रेणीका काव्य मान लिया जाय । इस देशके लोगोंकी साधारणतः ऊपर कही गई भ्रान्त धारणा है। इसीसे बंगला, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में कथोपकथनके रूपमें रचित असंख्य पुस्तकें नाटकके नामसे प्रकाशित होकर पढ़ी जाती हैं और उनका अभिनय भी होता है। वास्तवमें उनमेंसे अनेक पुस्तकें नाटक नहीं हैं। पाश्चात्य भाषाओं में अनेक उत्कृष्ट काव्य हैं जो नाटककी तरह कथोपकथनके रूपमें लिखित हैं। किन्तु वास्तवमें वे नाटक नहीं हैं। ' Comus', 'Manfred', ' Faust' इस बातके उदाहरण हैं। बहुत लोग शकुन्तला और उत्तररामचरितको भी नाटक कहकर स्वीकार नहीं करते। वे कहते हैं अँगरेजी और ग्रीक भाषाके सिवा किसी भाषामें प्रकृत नाटक नहीं हैं। गेटे कह गये हैं कि यथार्थ नाटक होनेके लिए बातचीतका ग्रन्थन और अभिनयकी उपयोगिता अत्यन्त आवश्यक नहीं है। हमारी समझमें 'Bride of Lammermoor' को नाटक कहनेसे कुछ अन्याय न होगा। इससे जान पड़ता है कि आख्यान-काव्य भी नाटकाकारमें प्रणीत हो सकता है, अथवा गीत-परंपरामें समिवेशित होकर गीतिकाव्यका रूप धारण कर सकता है।बंगलाभाषामें शेषोक्त विषयके उदाहरणका अभाव नहीं है। यह भी देखा गया है कि अनेक खण्डकाव्य महाकाव्यके आकारमें रचे गये हैं। यदि किसी एक सामान्य उपाख्या-

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