पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/७१

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बंकिम-निबन्धावली—
 
आर्यजातिका सूक्ष्म शिल्प ।

कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि इस संसारमें सुख नहीं है, वनमें चलो, भोग समाप्त करके मुक्ति या निर्वाण प्राप्त करो। और कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि संसार सुखमय है, वञ्चकोंकी वञ्चनापर ध्यान न देकर खाओ, पीओ, सोओ। जो लोग सुखके अभिलाषी हैं उनमें भी अनेक मत हैं । कोई कहता है धनमें सुख है, कोई कहता है मनमें सुख है । कोई धर्ममें सुख और कोई अधर्ममें सुख मानता है। किसीको कार्यमें सुख है, किसीको ज्ञानमें सुख है । किन्तु ऐसा मनुष्य एक भी नहीं देख पड़ता जो सौन्दर्यमें सुख न मानता हो । संसारमें सब सुन्दरी स्त्रीकी कामना करते हैं, सुन्दरी कन्याका मुख देखकर प्रसन्न होते हैं, सुन्दर बालककी ओर देखकर विमुग्ध होते हैं, सुन्दर बहू के लिए बड़ी कोशिश करते हैं, सुन्दर फूल चुनकर अपने पास रखते हैं । घोर परिश्रम करके जो धन पैदा करते हैं, उसे खर्च करके सुन्दर घर बनवाते हैं और उसमें सुन्दर सामान रखते हैं—इसके लिए ऋणी भी हो जाते हैं । सर्वथा सुन्दर सजधजसे आप सुन्दर बनना चाहते हैं। चिड़ियातक सुन्दर देखकर पालते हैं, सुन्दर वृक्षोंसे सुन्दर बाग लगाते हैं । सुन्दर मुखकी सुन्दर हँसी देखनेके लिए सुन्दर स्वर्ण और रत्नके आभूषण सुन्दरीको पहनाते हैं । सभी नित्य सौन्दर्य- की तृष्णामें चूर रहते हैं। किन्तु कभी किसीने इधर अधिक ध्यान न दिया होगा, इसीसे ये बातें यहाँपर इतने विस्तारसे कही गई हैं।

यह सौन्दर्य-तृष्णा जैसी प्रबल है वैसी ही प्रशंसनीय और परिपोषणीय भी है। मनुष्यके जितने सुख हैं उनमें यही सुख सबसे श्रेष्ठ है। क्योंकि पहले तो यह पवित्र, निर्मल और पापके संसर्गसे शून्य है। सौन्दर्यका उपभोग केवल मानसिक सुख है—इन्द्रियसुखके साथ इसका कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। यह सच है कि अकसर सुन्दर वस्तुका इन्द्रिय-तृप्तिके साथ सम्बध होता है; किन्तु सौन्दर्यसे उत्पन्न सुख इन्दियतृप्तिसे भिन्न है। रत्नजटित सोनेके गिलास या कटोरीमें जल पीनेसे जिस तरह तुम्हारी प्यास जाती रहेगी, उसी तरह भद्दे बने हुए मिट्टीके कुल्हड़ेमें जल पीनेसे भी

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