पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/७२

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आर्यजातिका सूक्ष्म शिल्प।
 

तुम्हारी प्यास मिट जायगी । स्वर्णपात्रमें जल पीनेका जो अतिरिक्त सुख मिलता है वह सौन्दर्य-जनित मानसिक सुख है। अपने स्वर्णपात्रमें जल पीनेके अहंकारका सुख उसके साथ मिला हआ अवश्य होता है, किन्तु पराये स्वर्णपात्र में जल पीनेपर प्यास मिटनेसे अलग जो सुख मिलता है, वह केवल सौन्दर्यजनित है, यह बात माननी ही पड़ेगी। दूसरे यह सुख सब सुखोंसे बढ़कर तीव्र होता है । जिन्हें प्राकृतिक शोभा देखना पसन्द है या जो काव्यामोदी हैं, वे इसके अनेक उदाहरणोंको खोज ले सकते हैं। सौन्दर्यके उपभोगका सुख अकसर इतना तीव्र होता है कि असह्य हो उठता है। तीसरे अन्यान्य सुख बारबार भोगनेसे अरुचिकर हो जाते हैं, किन्तु सौन्दर्यजनित सुख सदा नया, सदा प्रसन्नता देनेवाला बना रहता है।

अतएव जो लोग मनुष्यजातिका यह सुख बढ़ाते हैं, उन्हें मनुष्यजा- तिका उपकार करनेवालोंमें सर्वोच्च पद मिलना चाहिए। यह सच है कि जो भिक्षुक खंजरी बजाकर, भजन गाकर, मुट्ठीभर भीख पाकर चला जाता है, उसे कोई मनुष्यजातिका बड़ा उपकार करनेवाला न मानेगा । किन्तु जो वाल्मीकि चिरकालके लिए कोटि कोटि मनुष्योंके अक्षय सुख और चित्तके उत्कर्षका उपाय कर गये हैं, वे यशके मन्दिरमें न्यूटन, हार्वी, वाट या जेनरके नीचे स्थान पानेके योग्य नहीं हैं। बहुत लोग लेकी, मेकाले आदि असारग्राही लेखकोंके अनुवर्ती होकर कविकी अपेक्षा जूते बनानेवा- लेको उपकारी कहकर ऊँचे आसनपर बिठाते हैं। पर इस मूर्खदलमें कुछ आधु- निक अर्धशिक्षित बाबू लोग ही अग्रगण्य हैं। उधर विलायतमें राजपुरुष- चूडामणि ग्लाडस्टन, स्काटलेंडके मनुष्योंमें ह्यूम, स्मिथ, हण्टर, कार्लाइल आदिके रहते भी वाल्टर स्काटको सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जैसे मनुष्यके अन्यान्य अभावोंकी पूर्तिके लिए एक एक शिल्पविद्या है, वैसे ही सौन्दर्यकी आकांक्षा पूर्ण करनेके लिए भी विद्या है। सौन्दर्य उत्पन्न करनेके विविध उपाय हैं । उपायोंके भेदके अनुसार उस विद्याने भिन्न भिन्न रूप धारण किये हैं।

हम जिन सुन्दर वस्तुओंको देखते हैं, उनमेंसे कुछ एकके केवल वर्ण ही है, और कुछ नहीं है—जैसे आकाश ।

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