पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/७३

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बंकिम-निबन्धावली—
 

और कुछ एकके वर्णके सिवा आकार भी है—जैसे पुष्प ।

कुछ एकके वर्ण और आकारके सिवा गति भी है जैसे—नाग ।

कुछ एकके वर्ण, आकार और गतिके सिवा शब्द भी है—जैसे कोकिला मनुष्यके वर्ण, आकार, गति और शब्दके सिवा अर्थयुक्त वाक्य भी है।

अतएव सौन्दर्य उत्पन्न करनेकी ये ही कई एक सामग्रियाँ हैं—वर्ण, आकार, गति, शब्द और अर्थयुक्त वाक्य ।

जिस सौन्दर्यजननी विद्याका आधार वणमात्र है, उसको चित्रविद्या कहते हैं।

जिस विद्याका अवलंबन आकार है, वह दो प्रकारकी है। जड़के आकारका सौन्दर्य जिस विद्याका उद्देश्य है उसको स्थापत्य कहते हैं। चेतन या उद्भि- जका सौन्दर्य जिस विद्याका उद्देश्य है उसे भास्कर्य कहते हैं।

जिस सौन्दर्यजननी विद्याकी सिद्धि गतिके द्वारा होती है उसको नृत्य कहते हैं।

शब्द जिस विद्याका अवलम्बन है उसे संगीत कहते हैं।

वाक्य जिसका अवलम्बन है उसे काव्य कहते हैं। काव्य, संगीत, नृत्य, भास्कर्य, स्थापत्य और चित्र—ये छः सौन्दर्यजननी विद्यायें हैं। इन विद्या- ओंका जो जातिवाचक नाम प्रचलित है, उसका अनुवाद करके उनको ' सूक्ष्म शिल्प' नाम दिया गया है।

सौन्दर्य उत्पन्न करनेवाली ये छः विद्यायें मनुष्यजीवनको अलंकृत और सुखपूर्ण बनाती हैं। भाग्यहीन हिन्दुस्तानियोंके भाग्यमें यह सुख नहीं बदा है। सूक्ष्मशिल्पके साथ उनका बड़ा विरोध है। इन विद्याओंके प्रति इस देशके लोग बहुत ही अनादर और घृणाका भाव दिखाते हैं। इस देशके लोग वास्तवमें सुखी होना जानते ही नहीं।

हम स्वीकार करते हैं कि सारा दोष इस देशके लोगोंका अपना ही नहीं है। उसमें कुछ दोष हमारी सामाजिक रीति-नीतिका भी है। हम बापदादेकी देहली छोड़कर कहीं जायेंगे नहीं—उसीमें असंख्य सन्तान-सन्तति लेकर बिलमें चींटियोंकी तरह रहेंगे। अतएव स्थानाभावके कारण सफाई और सौन्दर्य-साधन हो नहीं सकता । कुछ दोष हमारी गरीबीका भी है।

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