पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/७५

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बंकिम-निबन्धावली—
 
संगीत।

संगीत किसे कहते हैं ? सभी जानते हैं कि सुरसमेत शब्द ही संगीत है। पर अब प्रश्न यह है कि सुर क्या है ?

किसी वस्तुमें दूसरी वस्तुका आघात लगनेसे शब्द उत्पन्न होता है, और जिस पदार्थमें आघात लगता है उसके परमाणुओंमें कम्पन पैदा हो जाता है । उस कम्पनसे उसके आसपासकी हवा भी कम्पित होती है । जैसे तालाबमें जलके ऊपर ईंट फेकनेसे छोटी छोटी लहरें उठकर मण्डलाकारमें फैलती हैं वैसी ही कम्पित वायुकी लहरें चारों ओर फैलती हैं। वे ही तरंगें कानमें प्रवेश करती हैं । कानके पर्देमें एक सूक्ष्म झिल्ली है । वायुकी लहरोंका सिलसिला उसी झिल्लीपर जाकर धक्का मारता है। उसके बाद वह उस झिल्लीसे मिली हुई हड्डी आदिके द्वारा कानके स्नायुमें पहुंचकर मस्तिष्कमें प्रवेश करता है । उसीसे हमें शब्दका अनुभव होता है।

इस कारण वायुका कम्पन ही शब्दका मुख्य कारण है। वैज्ञानिकोंने यह निश्चित किया है कि जिस शब्दमें, हर सेकण्डमें, ४५,००० दफा वायुका कम्पन होता है उसे हम सुन पाते हैं; उससे अधिक कम्पन होने पर हम नहीं सुन पाते । एक और वैज्ञानिकका कहना है कि हर सेकण्डमें जिस शब्दमें, १४ दफासे कम कम्पन होता है उस शब्दको हम नहीं सुन पाते । इस वायु-कम्पनकी समान मात्रा ही सुरका कारण है। दो कम्पनोंमें जितना समय बीतता है वह यदि हरबार समान रहे तो सुर पैदा हो जाता है। गीतमें ताल जैसे मात्राकी समता मात्र है, वैसे ही शब्दकम्पनमें मात्राकी समता होनेसे सुरकी उत्पत्ति होती है। जिस शब्दमें वह मात्राकी समता नहीं, वही 'बेसुरा' कहलाता है । ताल-सुर ही संगीतका सारांश है।

इस सुरकी एकता या बहुत्व ही संगीत है। बाहरी प्रकृति-तत्त्वमें संगीतकी यह प्रक्रिया है । किन्तु इससे मानसिक सुख क्यों होता है, सो मी बतलाते हैं।

संसारमें कुछ भी ऐसा नहीं जो सम्पूर्ण रूपसे उत्कृष्ट हो । सभी चीजोंमें उत्कर्षके किसी अंशका अभाव या दोष है। किन्तु निर्दोष उत्कर्षकी हम

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