पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/७८

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संगीत ।
 

विषयोंमें मनुष्यस्वभावसम्पन्न हैं, वहाँ स्वर-समष्टि रागके लिए इन बातोंकी कल्पनाका होना क्या विचित्र है ? वे भी साकार गृहस्थ माने गये। रागके साथ रागिनीकी कल्पना हुई। केवल यही नहीं कि हर एक रागके एक ही एक रागिनी हो। वे भी बंगाली कुलीन ब्राह्मण, पालीगेमिस्ट, हैं। एक एक रागके छः छः रागिणियाँ हैं। संगीतके रसिकोंको इतनेहीसे सन्तोष नहीं हुआ। उन्होंने रागोंको पूरा बाबू बना डाला। रागिणीके ऊपर उप- रागिणियोंकी भी कल्पना हुई। उपरागिणियोंके लिए उपरागोंकी भी कल्पना हुई। राग-रागिणी, उपराग-उपरागिणी वगैरहके लड़के-बाले और पोते- पोती भी देख पड़े।

किन्तु यह सब केवल दिल्लगी भी नहीं है। इस दिल्लगीके भीतर विशेष सारांश है। राग-रागिणियोंको आकार देना केवल दिल्लगी नहीं है। शब्द- शक्तिको कौन नहीं जानता? इस बातको सब जानते हैं कि किसी खास शब्दको सुनकर मनमें किसी खास भावकी उत्पत्ति हुआ करती है। किसी दृश्य वस्तुको देखकर भी उसी भावका उदय हो सकता है। मान लो, हमने कभी किसी पुत्रशोकसे व्याकुल माताके रोनेकी ध्वनि सुनी। यह भी मान लो कि वह रोनेवाली हमें देख नहीं पड़ती। हम केवल उसके रोनेकी ध्वनि सुन रहे हैं। उस ध्वनिको सुनकर हमारे मनमें शोकका आविर्भाव हुआ। फिर हम जब वैसा ही रोनेका शब्द सुन पायेंगे, हमको वही शोक याद आ जायगा—वैसे ही शोकका आविर्भाव होगा।

मान लो, अन्यत्र हमने देखा कि पुत्रशोकसे आतुर माता बैठी हुई है। वह रोती नहीं है, किन्तु उसका चेहरा देखनेसे ही हमने उसकी उत्कट मानसिक यंत्रणाका अनुभव कर लिया। उस सन्तापसे क्लेशको प्राप्त मलिन मुख-मण्डलका भाव हमारे हृदयमें अंकित हो गया। तबसे जब वैसा मलिन शोकात चेहरा देखेंगे तभी हमको वह शोक याद आ जायगा—हृदयमें उस शोकका आविर्भाव होगा।

अतएव वह ध्वनि और वह मुखका भाव, दोनों ही हमारे मनमें शोकके चिह्नस्वरूप हैं। वैसी ध्वनिसे वही शोक याद हो आवेगा। मानस-

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