पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/८७

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बंकिम-निबन्धावली—
 

वर्षों के बीचमें ही ध्वंसको प्राप्त हो गया। सन् ६६४ ई० में पहले पहल अरबके मुसलमानोंने भारतपर आक्रमण किया था। उस सालसे ५२९ वर्षों के बाद शहाबुद्दीन गोरी उत्तरभारतपर अधिकार कर सका था । किन्तु शहाबुद्दीन गोरी या उसके अनुचर अरबी नहीं थे। जैसे अरबी लोगोंका यत्न निष्फल हुआ, वैसे ही गजनी शहरके रहनेवाले तुर्कोकी भी चेष्टा व्यर्थ हुई। जिन्होंने पृथ्वीराज, जयचन्द और सेनवंशीय राजाओंसे उत्तर-भारतका राज्य छीना, वे पठान या अफगान थे। अरबियोंके प्रथम भारताक्रमणके ५२९ वर्ष बाद और तुकोंके प्रथम भारताक्रमणके २१३ वर्ष बाद उक्त पठानोंने भारतके राज्यपर अधिकार कर पाया। पठानलोग कभी अरबी या तुर्क लोगोंके समान समृद्धिशाली या प्रतापी न थे। उन्होंने केवल पहलेके अरबी और तुर्क लोगोंके सूचित कार्यको सम्पन्न किया *। अरबी, तुर्क और पठान, इन तीनों जातियोंकी यत्नपरम्परासे साढ़े पाँचसौ वर्षमें भारतवर्षकी स्वाधीनता मिटी।

मुसलमान साक्षी यही कहते हैं। यह भी स्मरण रखना उचित है कि इन्होंने जब हिन्दुओंका परिचय पाया, तब हिन्दुओंका सुदिन बीत चुका था—राजलक्ष्मी क्रमशः फीकी पड़ती जा रही थी। ईस्वी सन् चलनेके पहले- वाले हिन्दू अधिकतर बलवान् थे, इसमें कोई सन्देह नहीं।

उसी समय यहाँके लोगोंके साथ ग्रीक लोगोंका परिचय हुआ। वे खुद अद्वितीय बलशाली थे। उन्होंने वारम्वार भारतवर्षके लोगोंके साहस और युद्ध-निपुणताकी प्रशंसा की है। मेसीडोनियाके विप्लवके वर्णनके समय ग्रीक- लेखकोंने बार बार यह लिखा है कि एशियामें ऐसी युद्ध-निपुण दूसरी जाति उन्होंने नहीं देखी। यह भी लिखा है कि हिन्दुओंने ग्रीक-सेनाको जितनी हानि पहुँचाई, उतनी और किसी जातिने नहीं। प्राचीन भारतवर्षके लोगोंकी युद्ध-निपुणताके सम्बन्धमें अगर किसीको संशय हो, तो उसे भारतवर्षका वृत्तान्त लिखनेवाले ग्रीक लोगोंके ग्रन्थ पढ़ने चाहिए।

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* पश्चिम अंशमें अरबी और तुर्कलोग केवल कुछ भूमिपर अधिकार कर सके थे।

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