पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१००

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बगुला के पंख आदमी था, काम का कुछ भी तजुर्बा न था। दफ्तर में आकर उसे ज्ञात हुआ कि दिल्ली का वाइस-चेअरमैन बनना हंसी- खेल नहीं है। मेज़ पर फाइलों का अम्बार लगा था। सेक्रेटरी एक-एक फाइल समझा रहा था, पर जुगनू खाक-धूल, कुछ नहीं समझ रहा था । वास्तव में यह सब समझने-करने की उसमें योग्यता ही न थी। फिर इस समय तो शारदा की मूर्ति उसके रक्त-बिन्दुओं में ऊधम मचा रही थी। लाला बुलाकीदास ने हर बात उसीपर डाल दी थी, मुंशी से कहो। बस उन्होंने यही नीति अपना ली। आज भी वे थोड़ी देर को आफिस में आए और 'मुंशी को समझानो' कहकर चले गए । अब मुंशी था और काम का पहाड़। सेक्रेटरी एक योग्य व्यक्ति था । वह एक आई० ए० एस० सिविलियन था। डिप्टी-कमिश्नर के पद पर रह चुका था। जागरूक और योग्य व्यक्ति था । अपने काम में सख्त और मुस्तैद । एक ही दिन में उसने चेअरमैन और वाइस- चेअरमैन की योग्यता और क्रियाशक्ति को समझ लिया था और अब वह सोलह आना अपने आफिस का सर्वेसर्वा था। सारे कामों का भार अब उसीपर था। कांग्रेस सरकार की यह एक विशेषता है जो शायद भारत की राजनीति के इतिहास में अद्वितीय है कि शीर्षस्थान गधों के लिए सुरक्षित रहते हैं। चाहे म्यूनिसिपल चेअरमैन हो या मिनिस्टर, उनकी योग्यता की नापतोल करने की कांग्रेस सरकार को आवश्यकता नहीं है । योग्य कर्मचारी उनकी अर्दली में रहते हैं, सब काम करते हैं ; इन कुर्सीनशीन गधों को केवल दस्तखत करने पड़ते हैं । दस्तखत करना अवश्य सब गधों पर लाज़िम है । एक ज़माना था कि भारत में पुश्तैनी गधे राज्य करते थे। ये राजा- महाराजा, ज़मींदार और रईस होते थे, योग्यता उनमें भी नहीं होती थी । बस खानदानी अधिकार की बदौलत वे सबके सिर पर बैठते थे । काम-धन्धा करने- वाले शिक्षित सुयोग्य व्यक्ति सव उनके नौकर-चाकर होते थे। कहना चाहिए गधों के नौकर घोड़े। बस, वैसा ही सिलसिला ज़रा बदला हुअा रूप धारण करके अब यह चला। अन्तर इतना था, उन गधों को खानदानी अधिकार प्राप्त था, इन्हें जनता के प्रतिनिधि होने का । जनता के प्रतिनिधि ये चुनाव से होते थे, जो एक धूर्ततापूर्ण, बेईमानी और बदमाशी का संगठन होता था। जो हो। अाज आफिस में पहले ही दिन दस्तखत करते-करते जुगनू का