पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१०४

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१०२ बगुला के पंख में जा घुसे। नवाव ने चाय का आर्डर दिया और एकान्त कक्ष में बैठकर कहा, 'हां, अब यहां देखना चाहिए । पर्स में क्या है ?' जुगनू ने पर्स नवाब के सामने टेबल पर रख दिया। नवाब ने गिना, पर्स में पंद्रह हज़ार के सौ-सौ के नोट थे । पर्स को लापरवाही से जुगनू के सामने फेंकते हुए उसने कहा, 'सिर्फ पंद्रह हज़ार ।' 'पन्द्रह हज़ार !' जुगनू का मुंह आश्चर्य से फैल गया । 'गिन लो भई ।' नवाब ने लापरवाही से कहा । 'तो फिर ?' 'तो फिर क्या ? रखो इन्हें ।' 'मतलब यह कि मैं इन्हें रख लूं, लाला को वापस न दूं ?' 'लाला का कतई यही मतलब था।' 'यानी लाला हमें ये रुपये दे गए। जान-बूझकर इस तरह पर्स छोड़ गए?' 'बेशक ।' 'इतने रुपये वे हमें क्यों देने लगे ?' 'इस पंचायत से तुम्हें क्या मतलब ! तुम्हें रुपयों की इस वक्त सख्त ज़रूरत है दोस्त, नया डेरा बदलना है तुम्हें, उसमें फर्नीचर चाहिए, नौकर-चाकर चाहिए, और भी खर्चे हैं । बस, इनसे अपना काम चलायो।' 'तो उन्हें कहकर देना था।' 'ऐसी रकमें कहकर नहीं दी जाती हैं ।' 'तो फिर, यह रकम मुझे लाला को कब लौटानी होगी ?' 'कभी नहीं दोस्त, यह तुम्हारी कुर्सी की पहली बोहनी है। ऐसे-ऐसे बहुत पर्स अब तुम्हारी जेब में आते रहेंगे।' 'लेकिन लाला मुफ्त में इतनी बड़ी रकम हमें क्यों देने लगे ?' 'मुफ्त में नहीं दोस्त, इसके बदले में तुम्हें उनका ज़रा-सा काम कर देना होगा।' 'कौन काम ?' 'दो-चार कण्ट्रैक्टों पर लाला बुलाकीदास के दस्तखत करा देने होंगे। बस तमाशा खत्म और पैसा हज्म ।'