पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१२९

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बगुला के पंख १२७ om राधेमोहन जैसे गधे की मुलाकात ने उसके कामुक मन में एक गुदगुदी उत्पन्न कर दी। उस बेवकूफ ने अपनी स्त्री की जो बढ़-बढ़कर तारीफ की थी, उसने उसके खून को गर्मा दिया था। उसे दीख रहा था कि यह शायद सबसे आसान शिकार होगा। रात भर वह उस अज्ञात, अपरिचित स्त्री की काल्पनिक मूर्तियां बनाता रहा । यह बात तो है ही कि सत्य से कल्पना अधिक सुन्दर होती है । क्योंकि वहां भावना ही भावना तो होती है। फिर जुगनू भावुक व्यक्ति था, भावावेश में वह तमाम रात उत्तेजित रहा । सुबह होते ही किसी दुर्दम्य पाशविक प्रेरणा से धकेला जाकर वह सीधा डाक्टर खन्ना के मकान पर जा पहुंचा । वह शारदा से इस गधे और इसकी पत्नी की कुछ अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहता था। जानकारी ही नहीं वह चर्चा करना चाहता था और इसी आवेश में वह शारदा के सहवास का भी आनन्द लूटना चाहता था। सच पूछा जाए तो इस समय वह इस कदर काम-विमोहित हो रहा था कि उसका ज्ञान और सावधानता भी कुण्ठित हो गई थी। परन्तु वहां जाकर उसने देखा बरांडे में शारदा के स्थान पर परशुराम बैठा है । परशुराम को देखते ही उसके खून की सारी गर्मी ठण्डी पड़ गई । वह अनमना-सा होकर एक कुर्सी पर बैठ गया । परशुराम से उसे ज्ञात हुआ कि शारदा डाक्टर खन्ना और अपनी माता के साथ कहीं रिश्तेदारी में गई है । जुगनू परशुराम की नज़र पहचानता था, अतः उसने वहां से खिसक चलना ही ठीक समझा। परन्तु परशुराम ने बाधा देकर कहा, 'बैठिए, बैठिए, आप तो भागने लगे।' 'मुझे एक ज़रूरी काम याद आ गया।' 'परन्तु शारदादेवी यदि यहां मिल जाती तो आप शायद वह ज़रूरी काम भूल जाते।' 'आप तो व्यंग्य कर रहे हैं।' 'आपको शायद बुरा लगा । लेकिन मैं आपसे कविता के सम्बन्ध में बात करना चाहता हूं।' 'कविता के सम्बन्ध में क्यों ?'