पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१३३

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बगुला के पंख १३१ और उसने उसे राधेमोहन के लिए ही खरीदा था । राधेमोहन ने कैमरा देखकर कहा, 'चीज़ तो उम्दा मालूम पड़ती है, नई भी है। कितने में सौदा हुआ ?' 'दे देंगे जो कीमत ठीक समझेंगे। सस्ता ही मिल जाएगा। वह आदमी गरज़मन्द है । अभी तुम इससे काम लो।' राधेमोहन कैमरे का इस्तेमाल करना बिलकुल ही नहीं जानता था । परन्तु उसने बड़े चाव से कैमरा ले लिया। कब कीमत देनी पड़ेगी-इस बात की भी उसने ज़्यादा परवाह न की। खाना-पीना देर तक होता रहा। राधेमोहन' की स्त्री का नाम गोमती था। वह मुंशी के सामने नहीं आई। परदे ही में रही । खाने-पीने से फारिग होने पर मुंशी ने ज़रा रंगीनी से कहा, 'भई, यह क्या बात है, भाभी साहिबा परदे ही में रहेंगी ? तुम तो कहते थे वे मेरी कविता पसन्द करती हैं ?' 'ज़रूर करती है। कल से पचास बार-सौ बार कह चुकी है।' इतना कहकर उसने रसोईघर की ओर मुंह करके कहा, 'भई, इधर आओ, मुंशी साहब से कैसा परदा, ये तो घर के ही आदमी हैं।' पर उस स्त्री ने परदे ही में से जुगनू की प्यासी आंखों को भांप लिया था । अांखों के उन भावों को, जिन्हें स्त्रियां तुरन्त समझ लेती हैं, समझ लेने में उसे क्षण भर की देर न लगी। उसने राधेमोहन के आवाहन का कोई उत्तर नहीं दिया । बाहर वह नहीं आई। राधेमोहन ने समझा उसकी बड़ी हेठी हुई । औरत ने हुक्म नहीं माना, तैश में आकर वह भीतर गया । दवे कण्ठ से भर्त्सना की-ऊंच-नीच समझाया । बहुत बड़ा आदमी है मुंशी। हर किसीके घर नहीं जाता। हम उससे फायदा उठाएंगे। इस तरह परदे में रहना जंगली प्रथा है। आजकल की पढ़ी-लिखी स्त्रियां परदा नहीं करतीं। परदा करनेवाली स्त्रियां जाहिल होती हैं । यही राधे- मोहन के उपदेश का सार था । परन्तु गोमती इस सारगर्भित भाषण से भी प्रभावित नहीं हुई। उसने कहा, 'बड़े आदमी हैं तो अपने घर के होंगे। हमें क्या ? उनके सामने जाने की क्या ज़रूरत है ?' 'मैं कहता हूं कि तुम एकदम जाहिल हो, गंवार ।' 'खैर, जैसी हूं-वैसी ही तो रहूंगी।'