पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१५१

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बगुला के पंख १४६ अब तक जितने आदमियों से वह मिला था, उनमें से एक परशुराम ही ऐसा व्यक्ति था, जिसपर उसका रंग नहीं जमा था तथा जो उसे रंगा गीदड़ समझकर उसीके मुंह पर बेतुकी सुनाता था, इसीसे शारदा के प्रति अतीव आकर्षण होने पर भी इन दिनों वह उधर जाने का साहस न कर सका था। पर इस निमन्त्रण-पत्र ने जैसे अकस्मात् ही शारदा की अमल-धवल शुभ्र शरदिन्दु-सी मूर्ति उसके सामने ला खड़ी कर दी। वह बड़ी देर तक शारदा की हस्तलिखित उस अनुरोध-पंक्ति को देखता रहा। एक ज़माना था कि दिल्ली एक उजाड़-सा शहर था। आप यदि लालकिले से चांदनीचौक में एक दौड़ लगाएं और फतहपुरी पर पाकर दम लें तो वस, समझिए आपने दिल्ली की परिक्रमा कर ली। बस, इतनी ही दिल्ली थी उन दिनों । गदर के बाद जो लालकिले की लाली गई तो दिल्ली की उदासी दिल्ली में छाई ही रही । पर वे दिन भी आए जब नई दिल्ली वसी। जार्ज पंचम का दरबार हुआ । दिल्ली को राजधानी बनाया गया। बरसों तक बड़े-बड़े यन्त्रों से पत्थरों पर खराद की गई। कौंसिल-भवन बना, सैक्रेटेरिएट बना, वाइसराय का घोंसला बना और धीरे-धीरे आज की दिल्ली मीलों में फैल गई। उसे बागों का और पार्कों का शहर कहें कि सड़कों का शहर, महलों का शहर या कि भाग- दौड़ का शहर । और आज तो वह अन्तर्राष्ट्रीय हलचलों का शहर बनता जा रहा है। विभिन्न देशों के नर-नारियों के जमाव ने उसमें एक ऐसी सार्वभौमिक आबोहवा को प्रवाहित किया है कि देखते ही बनता है। हौजखास कभी सुल्तान अलाउद्दीन के राजमहलों से जगमग रहता था। अब वे महल खण्डहर, तथा हौजखास खेतों में परिणत हो चुका है। परन्तु अब वहां मनोरम पार्क, प्रशस्त हरे-भरे लान बना दिए गए हैं । वस्ती भी काफी बढ़ गई है। राजधानी के सैलानी लोगों की पिकनिक का वह एक बहुत ही मनोरम ठीया है। पिकनिक की इस पार्टी में कोई बीस-पच्चीस स्त्री-पुरुष थे । पुरुष कम और