पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१५४

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१५२ बगुला के पंख " क्या यह खराव वात नहीं 'कौन बात? 'जी यही, बंगालिनों का साड़ी पहनने का ढंग। वाईं तरफ उसमें एक फालतू-सी सिकुड़न पैदा हो जाती है । आपने देखा न मैडम !' 'लेकिन साड़ी पहनने का बंगाली ढंग अच्छा होता है।' 'जी, खाक अच्छा होता है । क्यों रजनी, तेरी क्या राय है ?' 'अच्छा, तो तुम अब मेरी सलवार पर फब्तियां कसनेवाली हो !' रजनी ने तिनककर कहा। 'अख्खा, तो तुम्हारी सलवार में क्या सुरखाव के पर लगे हैं ?' 'लड़ो मत, लड़ो मत ।' कहती हुई मिसेज़ डेविड और भी गम्भीर हो गईं। इसी समय डाक्टर खन्ना हंसते हुए जुगनू के हाथ में हाथ दिए आए और कहने लगे, 'पाप अच्छी तो हैं मैडम, बाद मुद्दत देखा आपको।' 'तो आपकी बला से । डाक्टर जो ठहरे आप, जिन मरीज़ों से आपको फीस मिलेगी उन्हींके मिज़ाज पर तो आप हथेली लगाएंगे।' डाक्टर को आते देख सब लड़कियां फुर्र हो गईं। डाक्टर खन्ना ने कहा, 'माई गॉड, मैं तो आपकी इस कदर नाराजगी बर्दाश्त नहीं कर सकता। 'शुक्र है खुदा का, यह बात तो सुनने को मिली।' फिर उन्होंने जुगनू की ओर घूमकर कहा, 'आपआप ही शायद" 'ओह, इनसे परिचय कराना तो मैं भूल ही गया। ये मेरे दोस्त मुंशी जगन- परसाद हैं । म्युनिसिपैलिटी के वाइस-चेअरमैन ।' 'हां, हां, आपकी तो इस वक्त दिल्ली में धूम मची है। इसी सोमवार को तो आप पा रहे हैं हमारे स्कूल के जल्से को रौनक देने ।' 'मुझे याद है मैडम ।' 'तो डाक्टर खन्ना, आप भी भूल न जाना। शारदा का एक अोरियण्टल डान्स होगा । मैं उससे वादा करा चुकी हूं।' 'तो आप तो उसकी पुरानी उस्ताद हैं, आपसे नाहीं नहीं कर सकती।' 'बड़ी अच्छी लड़की है, अब इसकी शादी कर डालिए ।' 'वस, इसी फिक्र में हूं।'