पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१७१

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बगुला के पंख १६६ कहा, 'आपको मेरी कसम है । बस ज़रा-सा लीजिए।' उसने प्लेट बढ़ाई। निरुपाय श्रीमती बुलाकीदास ने एक टुकड़ा रसगुल्ला मुह में डाला। जुगनू ने कहा, 'कैसे दुःख की बात है, आप ऐसी पुण्यवती देवी की गोद बच्चे से खाली है। हरा-भरा घर बच्चे की किलकारी से सूना है।' श्रीमती बुलाकीदास का चेहरा उदास हो गया । एक ठण्डी सांस लेकर उन्होंने कहा, 'भगवान की माया है। भाग्य की बात है, इसमें किसीका क्या चारा !' 'परन्तु कुछ उपाय तो होना ही चाहिए। अभी आपकी उम्र ही क्या है !' 'बहुत उपाय -दवा-दारू, मन्त्र-जन्त्र कर लिए।' 'परन्तु श्रीमतीजी, बच्चे दवा-दारू और मन्त्र-जन्त्र से नहीं होते। मर्द से होते हैं।' श्रीमती बुलाकीदास की छाती में जैसे किसीने गोली मार दी। क्षण भर के लिए उनकी सांस रुक गई। ऐसी बेहूदी बात उनके सामने कहने की किसीने हिम्मत नहीं की थी। उनके मुंह पर पसीना छा गया और अांखें ज़मीन में घुस गईं । जुगनू ने एक छिपी दृष्टि से उनकी ओर देखा। वह कुछ और कहना चाह ही रहा था कि मिसेज़ डेविड व्यस्तभाव से आकर उन्हें मंच पर ले • चलीं । तालियों की प्रचण्ड गड़गड़ाहट में उन्होंने सभापति का स्थान' ग्रहण किया। समारोह का प्रोग्राम प्रारम्भ हुआ। ४८ आज के कार्यक्रम में सबसे आकर्षक वस्तु थी-शारदा का नृत्य । मिसेज़ डेविड और श्रीमती बुलाकीदास ने उससे नृत्य के लिए प्रथम ही स्वीकृति ले ली थी। परन्तु इसके बाद हौज खास में जो घटना कल रात उसके साथ घटी थी उसने उसे एकदम अस्तव्यस्त कर दिया था । जुगनू की उस अप्रत्याशित चेष्टा ने उसकी सम्पूर्ण चेतना को झकझोर डाला था। वह रात भर सो न सकी थी। और इसीने उसके चेहरे को काफी हानि पहुंचाई थी। उसके मुख पर खेलता हुआ वह सरल हास्य, नेत्रों में बिखरा-बिखरा-सा कटाक्ष, होंठों पर कौमार्य की