पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१७४

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१७२ बगुला के पंख घटनाओं का उनपर प्रभाव हुआ हो उनसे मुक्ति पा जाती हैं, तो उनका आत्मविश्वास लौट आता है। परन्तु इसके लिए उन्हें काफी धैर्य और सहिष्णुता की आवश्यकता होती है और अपने मानसिक कार्यकलापों को नियन्त्रित करना पड़ता है ; तब कहीं वे भय और मानसिक दुर्बलता पर काबू पा सकती हैं। शारदा का लालन-पालन सम्पन्न और सुरुचिपूर्ण परिवार में हुआ था। डाक्टर खन्ना और उनकी पत्नी, दोनों ही सुशिक्षित थे, परन्तु शारदा का मानसिक उठाव संयत न था। उसे लाड़-चाव मिला था, पर यत्किचित् असावधानता से उसकी शिक्षा-दीक्षा उन शिक्षिकाओं द्वारा हुई थी, जो मनो- वैज्ञानिक विकृतियों को नहीं जानती थीं । सम्पन्न परिवारों में प्रायः ही ऐसा होता है। माता-पिता बच्चों के लालन-पालन और शिक्षा-कार्यों में बहुधा उन सूक्ष्म मानसिक दोषों का ध्यान ही नहीं रख पाते जो उनमें चरित्र-गठन और आत्मविश्वास की गहरी स्थिति-स्थापकता में बाधक होते हैं। शारदा सच्चरित्र और शुद्धाचरण की लड़की तो थी, पर अात्मविश्वास की उसमें कमी थी। वह माता-पिता की दुलारी और ज़िद्दी लड़की थी। अपने अब तक के जीवन में वह न किसीकी अनुगता थी, न परमुखापेक्षिणी । पर मानापमान की सूक्ष्म अनुभूति उसमें थी। इसीसे वह पिछली रात भर सो न सकी। अपने कमरे को भीतर से बन्द कर इधर से उधर टहलती रही-रोती रही। और टूटती रात में जब उसने थकित भाव से अपने शरीर को बिस्तर पर डाला तो नींद की अपेक्षा अवसाद ने ही उसे अचेतन कर रखा । ५० समारोह का कार्यक्रम चल रहा था । पण्डाल में भारी भीड़ जमा थी। थोड़ी-थोड़ी देर में सभा-भवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता था। ग्रीन रूम में बैठी शारदा बेमन से अपना मेकअप कर रही थी उसका मन न जाने कहां था । वह स्वप्निल-सी हालत में थी। मेकअप में उसकी उंगलियां व्यस्त थीं,