पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१८०

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१७८ वगुला के पंख में गुण्डागर्दी करके देश की खिदमत करे । इस चाण्डाल चौकड़ी का चौधरी था, विद्यासागर नियोगी। भगवान ही जानते हैं कि इस सत्पुरुष ने किस कुल को अपने जन्म से धन्य किया था । और इसका वास्तविक नाम क्या था। कोई नहीं जानता था कि इस आदमी की शिक्षा-योग्यता क्या है । परन्तु कांग्रेस के हल्के में इस आदमी की तूती बोलती थी। इसके लिए कोई काम असाध्य न था । दर्जनों बार यह जेल जा चुका था। जाल करने, कर्जा अदा न करने, अवज्ञा आन्दोलन, गरज़ हर सीगे से उसने जेल के सीखचों को सरफराज किया था। परन्तु वह अपनी प्रत्येक जेलयात्रा को मुल्की खिदमत में ही गिनता था। यह आदमी खूब लम्बे डील- डौल का, चेचकरू, अांखें तेज़ और उभरी हुई नाक, अच्छा-खासा पठान लगता था । सदैव मैली-कुचैली खादी का धोती-कुरता पहने रहता । बहुत धीमे से, एकदम गम्भीर बनकर बात करता, बहुत कम हंसता, और प्रत्येक बात में एक शानदार बड़प्पन प्रकट करता था। ईश्वर ही जानता था कि वह कहां से खाता-पीता था। पर अड्डा उसने जिला कांग्रेस कमेटी में जमाया हुआ था । वह बहुधा उन सब आवारागर्द छोकरों को, जो अब दरअसल उसके सिपाही थे, नसीहतें देता, पर उनकी कोई शिकायत नहीं सुनता था। बात उनकी सदा धौंस से भरी रहती थी। और अब तो उसे सुनहरा अवसर मिला था चुनाव लड़ने का। जुगनू से उसकी पुरानी मुलाकात है, तभी की जब जुगनू शोभाराम के अधीन प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के दफ्तर में काम करता था, और बाद में वहां का ज्वाइण्ट सैक्रेटरी बन गया था। उसने पिछले म्युनिसिपल चुनावों में भी जुगनू की बड़ी मदद की थी। और अब जुगनू का हाथ खुला था । संपदा की उसे कमी न थी, बस उसने विद्यासागर को पूरे अखतियारात सौंप दिए थे। और अब उसने जुगनू के घर पर ही डेरा डाला हुआ था । जनता में उत्तेजना पैदा करने, झगड़े- टंटे पैदा करने, विरोधी गुटों को नीचा दिखाने ; खासकर चुनाव के मौकों पर नये-नये हथकण्डे काम में लाने में विद्यासागर यथा नाम तथा गुण था। एकान्त पाकर उसने जुगनू से कहा, 'मुंशीजी, यह साला फकीरचन्द तो आपका गुर्गा है। लाखों रुपयों का उसे आपने फायदा कराया है । वह आपके मुकाविले खड़ा हुआ है, बड़ा ही बेहया है। देश के इस दुश्मन को वह पटखनी