पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१९०

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१८८ बगुला के पंख । हुए कहा, 'यह लीजिए कांग्रेस का टिकट । समझदारी से काम लीजिए, इस फार्म पर दस्तखत कर दीजिए।' उसने अपना कीमती फाउण्टेन पैन उनकी ओर बढ़ाया । लाला इस समय बाला के शरीर से आती हुई सैंटों की सुगन्ध से शराबोर हो रहे थे। उन्होंने फिर एक चुस्की भरकर ज़रा बेतकल्लुफी प्रकट करके कहा, 'तो आप हुक्म दे रही हैं ?' 'खैर, यही समझ लीजिए।' 'तो लाइए, आपका हुक्म मैं नहीं टाल सकता।' उन्होंने दस्तखत कर दिए। और फिर समूचा गिलास चढ़ा लिया। जुगनू ने कहा, 'चैक आप विद्यासागर को दे दीजिए।' 'किसके नाम का चैक दूं ?' 'जिला कांग्रेस कमेटी के सैक्रेटरी के नाम । आप अपनी कार में आए हैं ?' 'जी नहीं, मैं टैक्सी में आया हूं।' 'तो माधुरी, तुम लालाजी को छोड़ती जाना, मैं अभी ज़रा बाकी काम खत्म कर लूं । अच्छा लालाजी, आप मेरी मुबारकबादी स्वीकार कीजिए । कामना करता हूं, आप एक दिन मिनिस्टर बनें ।' जुगनू ने खड़े होते हुए कहा। लाला ने भी 'आपकी कृपा है' कहकर हाथ जोड़कर नमस्कार किया। माधुरी के साथ वे वाहर पाए । विद्यासागर वहीं प्रतीक्षा कर रहा था। उसने पूछा, 'आपकी बातचीत सफल हुई लालाजी 'जी हां, आपकी कृपा से ।' 'तो यह लीजिए...' उसने जेब से कुछ कागज़ निकालकर लाला के हाथों में थमा दिए । उनपर एक नज़र डालकर लाला ने देखा तो उनकी वाछे खिल गईं। वही कोटे के परमिट थे । लाखों के मुनाफे का सूत्र उनकी मुट्ठी में था, जो इस प्रकार मानो जादू के ज़ोर से इस खब्ती-से आदमी ने कर डाला था। उन्होंने कृतज्ञता की दृष्टि विद्यासागर पर डाली । कहा, 'आपने बड़ी कृपा की। हां, कल तो आप मेरे पास आ ही रहे हैं।' 'ना जाऊंगा, अच्छा, नमस्कार।' विद्यासागर ने लापरवाही से रूखा नमस्कार किया । फिर माधुरी ने मधुर स्वर से कहा, 'चलिए।' और वे उसकी बगल में कार में आ बैठे।