पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२४०

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बगुला के पंख ख्याल रखता है और दूसरों को जलती आंखों से देखता और ज़रा-ज़रा-सी बात पर लड़ पड़ता है । इस प्रकार उदीयमान भारत की ओर एक तरफ जहां संतप्त संसार आशा की दृष्टि लगाए बैठा था, जहां नेहरू ने अपनी सामर्थ्य से तीसरी शक्ति, शान्ति का प्रादुर्भाव किया था, वहीं दूसरी ओर भारत का गणतंत्र संघर्षों, द्वेषों, आपाधापी, चोरबाज़ारी की कारस्तानियों और अन्धेरगर्दियों का अखाड़ा बना हुआ था। ऐसी दशा में जुगनू जैसों का मिनिस्टरी की कुर्सी पर आ बैठना आश्चर्यजनक न था। अकेला जुगनू ही इस प्रकार का व्यक्ति महामहिमावती कुर्सी पर नहीं बैठा था, अनेक अवसरवादी और भी थे । , ७५ मसूरी से वापसी में जब जुगनू दिल्ली लौटा, जयजयकारों के विजय- घोष ने स्टेशन को गुंजायमान कर दिया । कांग्रेस की पूरी विजय हुई थी और लाला फकीरचंद और जुगनू दोनों का चुनाव बहुत अधिक बहुमत से कामयाब हुआ था, जिसका श्रेय विद्यासागर को था। विद्यासागर उसी रूप के बेढंगे वेश में स्टेशन पर हाज़िर था । वही पहलेवाली मुस्कराहट उसके होंठों पर थी। लाला फकीरचन्द ने नई शेरवानी, चूड़ीदार पाजामा और गांधीटोपी धारण की थी। इसे नये वेश में लाला फकीरचन्द हंस-हंसकर लोगों की मुबारकबादियां ले रहे थे । गाड़ी से उतरते ही जुगनू को फूलों से लाद दिया गया और बड़ी धूमधाम से उसे एक जुलूस में घर ले जाया गया। अब जुगनू कांग्रेस ग्रुप का हाउस में लीडर था। खा-पीकर थोड़ा आराम करने के बाद कांग्रेस की कार्यकारिणी कमेटी की मीटिंग में उसे सम्मिलित होना पड़ा। अब सबका रुख उसीकी ओर था। इस बात से किसीको कोई सरोकार न था, कि वह कौन है, कांग्रेस और देश की उसने कितनी सेवा की है। सब लोग मुंशी जगनप्रसाद का जयजयकार कर रहे थे । और जुगनू बड़ी शान से अभिनन्दन ग्रहण कर रहा था। अन्ततः लोकसभा और राज्यसभा में विधि-विधान से इन दोनों सुयोग्य जनों का आसन जम गया। सभा की कर्यवाहियों का न इन लोगों को कोई