पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४० बगुला के पंख मनोदौर्बल्य पर जब परिस्थितियां सवारी गांठ लेती हैं तो मनुष्य बेबस हो जाता है । उसकी सारी विद्या-बुद्धि भी फिर उसे नहीं उबार सकती। पद्मादेवी भी दैवदुर्विपाक से पहले मानसिक दुर्बलता की शिकार हुईं, और अब परि- स्थितियों ने उन्हें दबोच लिया। मसूरी में रहते अब उन्हें एक साल बीत रहा । रुपये-पैसे की उन्हें कोई तकलीफ न थी। जुगनू हर माह एक हजार रुपया उन्हें भेजता था । और महीने में दो-तीन बार मसूरी आकर रह जाता था । मनोविकार से इन्कार नहीं किया जा सकता, पर इस अवस्था में उन्हें जो जुगनू को आत्मसमर्पण करना पड़ा, सो मनोविकार के कारण नहीं, परिस्थिति से लाचार होकर । शोभाराम शरीर का रोगी, और एक स्वस्थ स्त्री की काम- भूख को तृप्त करने में सर्वथा अयोग्य था, यह सच है । अर्से से पद्मा को पुरुष का सहवास न मिला था, यह भी सच है ; जुगनू के वलिष्ठ युवा शरीर ने और उसकी दुर्दम्य वासना ने पद्मा को अभिभूत कर दिया था, यह भी सत्य है । परन्तु वह एक शिक्षिता, विवेकशीला और शीलवती नारी थी। शोभाराम एक आदर्श सज्जन पुरुष थे, यद्यपि उन्होंने पद्मा को अपने सात वर्ष के दाम्पत्य जीवन में कोई विशेष सुख नहीं दिया था। उनकी आर्थिक अवस्था कभी सुधरी न थी । वे आदर्शवादी और कर्तव्यनिष्ठ कांग्रेसकर्मी थे ; सत्य और अहिंसा के व्रती । एक प्रकार से उन्होंने अपने जीवन को देश को समर्पित कर दिया था। पद्मादेवी के नये तरुण जीवन में अवसाद लाने के लिए यही बातें काफी थीं। फिर शोभाराम की दीर्घ रोगावस्था और उनकी असमय की दारुण मृत्यु । ये सब साधारण बातें न थीं । खासकर एक स्त्री के लिए जो अभी युवती ही थी, और जिसके जीवन के अरमान विकसित होने से प्रथम ही मुर्भा गए थे। पद्मा एक आदर्श गृहिणी थी। उसमें सौन्दर्य था, शिक्षा थी, प्रतिभा थी, शील था, मर्यादा थी और धैर्य था। परन्तु यह सब कुछ भी तो काम न आया। शोभाराम की मृत्यु के बाद वह जैसे एक रेगिस्तान में अकेली जा पड़ी, जिसका एकमात्र अवलम्ब जुगनू था । जुगनू का असंस्कृत, कामुक और तुच्छ व्यक्तित्व शीघ्र ही पद्मादेवी पर ब-१५