पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२४३

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वगुला के पंख २४१ प्रकट हो गया, जिसने उसकी आत्मा को पूरी तरह आहत कर डाला। भगवान ही जान सकते हैं कि संसार में कितनी अभागिनी स्त्रियां इन परिस्थितियों में पड़कर अपने जीवन को अपने ही हाथों नष्ट कर रही हैं । यद्यपि प्रस्ताव नितान्त असंगत था फिर भी पद्मादेवी ने शोभाराम की मृत्यु के बाद ही जब जुगनू उससे मिला तो विवाह का प्रस्ताव किया था। इस प्रस्ताव में न तो आत्मा का उल्लास था न प्रेम का ज़रा-सा भी पुट था, न वासना ही का कोई सम्पर्क था ; वह प्रस्ताव एक लाचारी के प्रति आत्म- समर्पण था। पद्मा का शून्य हृदय हाहाकार कर रहा था, धरती-आसमान पर उसका कोई न था, पति की मृत्यु-मुख में जाती हुई दारुण मूर्ति अभी उसके नेत्रों में थी। उसकी आंखें सूजी-सूजी-सी हो रही थीं। शोक पर नैराश्य और जीवन-संग्राम में पराजय के भय ने अपना प्रभाव डाला हुआ था और अब वह रोना भूल गई थी। आंखों में सूनी करुणा, होंठों में सूखी निराशा, हृदय में अनन्त हाहाकार और इसी दशा में उसने मुंह फाड़कर जुगनू से विवाह का प्रस्ताव किया था। इसलिए कि जुगनू का उसके पास आना-जाना अनिवार्य था। जुगनू की आंखों की भूख को वह जानती थी। वह यह भी समझती थी कि अकेले जुगनू ही का दोष नहीं है। यह आग उसने ही उसकी आंखों में सुलगाई है। उसने अपने हृदय में पहले उसका प्रेम संजोया है और अब वह प्रकट भी हो चुका है, अतः आत्मसमर्पण करना ही होगा । बचने का कोई ठौर ही नहीं है। इसीसे उसने सोचा कि कम से कम और जो कुछ हो, विवाह के बाद हो । उसकी आत्मा में कलुष का दाग लग चुका था। पर शरीर भी उसका कलुष से भर जाए और वह समाज में बिलकुल भी मुंह दिखाने के योग्य' न रहे, कम से कम यह बात वह नहीं चाहती थी। उसने विवाह के लिए बहुत हुज्जत-हठ किए, पर जुगनू की आपत्तियां तर्क- सम्मत थीं। अभी-अभी शोभाराम की मृत्यु हुई है । उनका शोक ताजा है । ऐसी अवस्था में विवाह एक दारुण घटना होगी, जो सुनेगा दोनों पर निष्ठुरता का आरोप करेगा । इसलिए यह काम कम से कम एक वर्ष बाद होना चाहिए। पद्मा के पास इसका जवाब ही न था। पर वह जानती थी कि वह जुगनू से अब अपनी रक्षा नहीं कर सकती। वह उसीके दिए धन से जीवनयापन कर रही थी। उसीका घरबार, उसीका एक मात्र सहारा। उसीका भीतर-बाहर