पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/३१

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बगुला के पंख २६ हो उठते । बड़ी विचित्र और असह्य थी यह स्थिति । एक ओर दो तरुण स्वस्थ शरीर थे । भिन्न लिंगी। यौन सम्पर्क में अबाध । दोनों ही में काम-बुभुक्षा जाग्रत थी। वह कृत्रिम या असामयिक उत्तेजना न थी। नैसर्गिक थी, जो स्वस्थ शरीर का धर्म है । दूसरी ओर सामाजिक मर्यादा का बन्धन था। काम-बुभुक्षा चाहे जैसी भी हो, चाहे जितनी भी हो, भिन्न लिंगी युगल चाहे जिस स्थिति में सुलभ भी हों, परन्तु उनका यौन सम्पर्क नहीं हो सकता। स्त्री-पुरुष नहीं मिल सकते । पति- पत्नी मिल सकते हैं । पति-पत्नी ही परस्पर यौन सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं। यही समाज की मर्यादा है । भूख है, बहुत तेज़ है, स्वाभाविक है, स्वस्थ शरीर का धर्म और तकाज़ा है । अतः उसे भोजन मिलना ही चाहिए। भोजन भी उप- स्थित है। उसकी प्राप्ति में बाधा भी नहीं है । वह दूषित भी नहीं है, पर अखाद्य है। खाया नहीं जा सकता । अखाद्य इसलिए नहीं कि उसमें भोजन-तत्त्व नहीं है, परन्तु इसलिए कि उसका खाना निषिद्ध है। जैसे किसी निरामिषभोजी के समक्ष तीव्र भूख लगने पर ताज़ा स्वादिष्ट मांसाहार अखाद्य है, उसी प्रकार । ठीक ऐसी ही स्थिति यहां थी-पद्मादेवी और जुगनू के बीच । विवाहिता पत्नी के साथ यौन सम्पर्क केवल उसके विवाहित पति को ही रखने का एका- धिकार है । यह एकाधिकार एकान्त है । इसमें एक अणु मात्र का भी विकल्प नहीं है । किसी भी स्थिति में विवाहिता स्त्री को पति से भिन्न दूसरे पुरुष से यौन सम्पर्क स्थापित करना अधर्म, अमर्यादित और अपवित्र कार्य है । सतीत्व की मर्यादा के नितान्त प्रतिकूल है ; भले ही पति रोगी हो या अन्य कारणों से स्वस्थ पत्नी के साथ यौन सम्पर्क रखने की कतई योग्यता न रखता हो । वह चिरकाल सक पत्नी से दूर रहता रहा हो, उसने पत्नी को त्याग भी दिया हो, तो भी वह स्त्री दूसरे पुरुष के साथ यौन सम्पर्क स्थापित करके अपनी स्वस्थ काम-बुभुक्षा को तृप्त नहीं कर सकती। और यह नियम सामाजिक चरम चारित्र्यमूलक नीति पर आधारित नियम है । परन्तु यह केवल स्त्री के ही लिए है, पुरुष के लिए नहीं । पुरुष ऐसी स्थिति में सरलता से अन्य स्त्री से यौन सम्पर्क स्थापित करके अपनी काम-बुभुक्षा को तृप्त कर सकता है । समाज में उसे स्त्रियां सुलभ हैं। उनसे काम-सम्पर्क रखने में बस ज़रा-सी आड़, थोड़ा-सा पर्दा ही अपेक्षित है । और कुछ नहीं। 2