पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/५२

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५० बगुला के पंख 'जिधर आप ले जाएं।' 'तो चलिए जी० बी० रोड, एक नई चिड़िया आई है, उसीकी बानगी देखी जाए।' 'अरे यार, आज जी० बी० रोड की कोई आधी दर्जन चिड़ियों का चालान कर चुका हूं। कहीं वही जानी-पहचानी न हों।' 'तब गोली मारिए। चलिए मोती के कोठे पर । उसका नाम तो आपने सुना होगा ?' 'सुना तो है । सुना है खूब गाती है।' 'अब हाथ कंगन को आरसी क्या ? चलकर देखिए।' 'मगर दोस्त तख्लिया हो।' 'सरकार खातिर जमा रखें । वह घर तो अपनी लौंडी का है।' 'खैर, तो मुंशी से तो पूछ लो।' 'उनसे क्या पूछना, अभी बचकाने हैं। अभी तो ए बी सी डी सीखना है उन्हें ।' तीनों आदमी उठ खड़े हुए । सेठ ने बिल पेमेण्ट किया। बैरा को टिप दिया और बाहर आए । सेठ ने सरदार से कहा, 'सरकार की गाड़ी ही में चलेंगे। अपनी गाड़ी मैं यहीं छोड़ देता हूं।' तीनों गाड़ी में बैठे । गाड़ी जी० वी० रोड पर मोतीबाई के कोठे के नीचे आ लगी। कार के रुकते ही दो-तीन दलाल गाड़ी का दरवाज़ा खोलने को लपके । एक ने भीतर झांककर देखा और साथी से कहा, 'अवे हट, देखता नहीं। नवाब के सेठजी मोतीबाई के कोठे पर जाएंगे ।' उसने सेठ को झुककर सलाम किया और आवाज़ दी, 'भई नवाब, तुम्हारे सेठ हैं, पारो इधर ।' जिसे नवाब कहकर पुकारा गया था, वह एक दुबला-पतला आदमी था। साफ अद्धी का बगुला के पर के समान सफेद कुर्ता, लट्टे का चुस्त पायजामा, पैर में पंप शू, उंगली में अधजली सिगरेट, मुंह में पान की गिलौरी, सिर पर लखनऊ की दुपल्लू टोपी, ढलती उम्र, किन्तु ऊपर से नीचे तक शौकीन, पनवाड़ी की दूकान से उतरा, लपकता हुअा अाया। कार का दरवाजा खोला और 'हुजूर' कहकर तीनों को झुककर सलाम किया। सेठजी ने कहा, 'भई नवाब साहब, क्या हाल-चाल है ?'