पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/५४

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५२ बगुला के पंख रईस साहबजादे उखड़ गए। ठुमरी खत्म होते ही वे उठ खड़े हुए । लाला ने कहा, 'बैठिए साहबजादा साहब, चल कैसे दिए ।' 'जी, एक ज़रूरी काम याद आ गया।' उनके जाते ही नवाब ने जीने का कुण्डा चढ़ा दिया । लाला फकीरचन्द ने कहा, 'लौंडा, साला, चला तमाशबीनी करने को, अब जमिए सरकार ठाठ से । भई मुंशी, उधर सिकुड़े हुए कैसे बैठे हो ? बेतकल्लुफा से बैठो। मोतीबाई से फरमाइश करो।' जुगनू का इस नई दुनिया में पहला कदम था, व्हिस्की उसके रक्त में उत्पात मचा रही थी। हकीकत तो यह थी कि वह सीधा बैठ नहीं सकता था, सब बातें ठीक-ठीक समझ भी नहीं रहा था, एक स्वप्निल मनुष्य' की भांति उसने कहा, 'गज़ल ।' 'तो फिर हो जाए गज़ल । एक फड़कती हुई चीज़ हो ।' मोतीबाई ने एक गज़ल खम्माच के सुरों में गाई। सौ रुपए का एक नोट उसकी गोद में आ गिरा। इसके बाद लाला ने इशारे से गाना बन्द करने का हुक्म दिया। मोतीवाई ने पान की तश्तरी पेश की। वह गाना बन्द कर लाला के और पास खिसककर आ बैठी। लाला फकीरचन्द ने कहा, 'मोतीबाई, कोई बिलकुल ताज़ा माल हमारे हुजूर के लिए, और एक चुलबुली-सी छोकरी मुंशी के लिए। समझ गईं ?' 'अभी लीजिए।' कुछ रुककर उसने जुगनू की ओर देखकर कहा, 'आप वहां सिकुड़े-से क्यों बैठे हैं साहब !' फिर उसने तबलची से कहा, 'उस्ताद, इन्हें राज के कमरे में पहुंचा दो । कहना, हमारे खास मेहमान हैं और ज़रा हीराबाई को यहां बुला लायो।' लाला फकीरचन्द ने गुदगुदाकर जुगनू को उठाते हुए कहा, 'जानो मुंशी, ऐश करो, सुबह चार बजे मुलाकात होगी।' जुगनू लड़खड़ाते पैरों तबलची के पीछे चल दिया। थोड़ी ही देर में हीराबाई ने आकर आदाब झुकाया। मजिस्ट्रेट अब कुछ बेतकल्लुफ हो गए थे। नवाब ने व्हाइट हार्स और गिलास सामने ला धरा । मोतीबाई ने पैग तैयार करके पेश किए और हीराबाई को सरदार साहब के