पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/८४

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८२ बगुला के पंख - २२ बजट का भाषण तैयार करने में शोभाराम ने बड़ा परिश्रम किया था। हर बात की तह तक पहुंचने की उसकी आदत थी। उसने हर पहलू पर गम्भीर विवेचन किया। आवश्यक आंकड़े नोट कराए । बजट पेश किया चेयरमैन ने । अब बजट पर बहस की बारी आई। जनसंघी सदस्यों ने अपना बुखार उतारना प्रारम्भ किया। यहां क्या कांग्रेसी, क्या स्वतन्त्र और क्या जनसंघी-सब अपनी-अपनी खिचड़ी पका रहे थे । उचित तो यह था कि यहां आकर सब एकमत होकर नागरिक सुख-सुविधा का ध्यान रखते, परन्तु सबको अपने-अपने दल की प्रतिष्ठा ही मुख्य दीख रही थी। बड़ी करारी चोंचें हुईं और अब जुगनू की बारी आई। इस समय उसका बुरा हाल हो रहा था । उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे तेज़ बुखार चढ़ा हो । वह वास्तव में नहीं जानता था कि क्या कहे । परन्तु खड़े होते ही उसने बड़े ही प्रभावशाली ढंग से एक नज़्म पढ़ी जो नवाब ने लिखी थी। उसके गले के चमत्कार ने और नज़्म के मज़मून ने सन्नाटे का आलम पैदा कर दिया। सामने दर्शकों में शोभाराम बैठा मुस्करा रहा था और जुगनू उसे देखकर मन को ढाढ़स दे रहा था । नज़्म का बहुत भारी प्रभाव पड़ा । सभा-भवन का वातावरण एक- दम शान्त हो गया। अब जुगनू ने कहना प्रारम्भ किया, 'मित्रो, क्या आप चाहते हैं कि हम केवल गाल बजाकर बाशूर बनें । कोरी बकवास करें। हमारे सामने शहर के हज़ारों बच्चों की तालीम का सवाल है । अंधेरे और तंग मकानों में बन्द लाखों उन बहनों-बेटियों की तन्दुरुस्ती का सवाल है कि जिनके लिए आज न अच्छे अस्पताल हमारे पास हैं, न जच्चाखाने । शहर के घर अंधेरे, कुरुचिपूर्ण, तंग, नाकाफी और पुराने ढंग के बने हुए हैं। उन्हीं में सब लोग भेड़-बकरियों की भांति भरे हुए हैं। मौत और जिन्दगी उनके लिए एक-सी है । हकीमों और डाक्टरों में उनकी आधी कमाई खर्च होती है। भारत की राज- धानी के लिए यह कलंक की बात है । इस कलंक को हम दूर करेंगे या मर मिटेंगे। आज हम यह प्रतिज्ञा करते हैं। हां, कहिए साहबान, क्या आप मेरे साथ हैं ?' तालियों की गड़गड़ाहट से सभा-भवन गूंज उठा । जुगनू ने एक बार शोभा-