पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बगुला के पंख ६३ 'तो आप उसे चेअरमैन बना दीजिए।' 'मैं इसमें भला क्या कर सकता हूं?' 'चांदी के जूते में बड़ी-बड़ी करामात है,-लाला साहब ।' 'खैर, तो तुम जानो । मैं तैयार हूं । तो कल रात ही को रही ?' 'हां, कल ही रात को आठ बजे । इम्पीरियल में।' 'मैं ठीक वक्त पर पहुंच जाऊंगा।' 'बेहतर, तो बन्दा आपके इस्तकबाल के लिए हाज़िर मिलेगा। आदाबर्ज , नवाब ने झुककर आदाब बजाया और चल दिया। २६ जुगनू ने घर आकर देखा कि डाक्टर खन्ना साहब ने उसे दूसरे दिन ऐट होम का निमन्त्रण भेजा था। शोभाराम ने बताया कि बहुत देर तक डाक्टर साहब का आदमी बैठा रहा । मैंने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया है। कल मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा। जुगनू के मन में बहुत-से विचार इस समय उठ रहे थे। अतः उसने शोभाराम से अधिक बातचीत नहीं की। स्वीकृतिसूचक सिर हिलाकर अपने कमरे में सोने चला गया। और दूसरे दिन जब नवाब लाला फकीरचन्द पर मक्खन लगा रहा था, जुगनू शोभाराम के साथ डाक्टर खन्ना के ऐट होम में जाने की तैयारी कर रहा था। ऐट होम बड़े ठाठ का रहा। यद्यपि चुने हुए आदमी ही उसमें शरीक थे, पर तड़क-भड़क में वह बड़े शान की दावत थी । ऐसी शानदार दावत जुगनू को अपने जीवन में पहली ही बार मिली थी। अब यह जुगनू वह जुगनू न था जिसका मन संकोच और हीन भावनाओं से सिकुड़ा हुआ था। न वह अब कोरा मुंशी था जिसके दो-चार शेर सुनकर मनोरंजन करने को लोग उत्सुक रहते थे। अव तो वह नगर का एक विशिष्ट मान्य पुरुष था। हर कोई उसका सम्मान करता था। हर कोई उससे हाथ मिलाता और उसकी कृपादृष्टि चाहता था। भाग्योदय के शिखर की ओर उसकी गाड़ी तेज़ी से दौड़ रही थी। स्वच्छ, केवल