पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/९६

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बगुला के पंख खद्दर की शेरवानी और चूड़ीदार पायजामा पहने तथा नोकदार गांधी टोपी लगाए, करीने से मूंछे कतरवाकर वह अब वास्तव में एक प्रभावशाली तरुण प्रतीत हो रहा था। वह बड़ी शालीनता से मुस्करा-मुस्कराकर हर एक से हाथ मिला रहा था। मुस्कराहट के साथ ही वह लोगों पर अपनी कृपादृष्टि बिखेर रहा था। 7 लोगों से हाथ मिलाता, उनका अभिनन्दन करता हुआ वह जब भीड़ में आगे बढ़ रहा था तभी डाक्टर खन्ना लपकते हुए पाए । तपाक से उसे ले जाकर उन्होंने एक कोच पर जा बिठाया। इस समय' शोभाराम प्रबन्ध में जुटा हुआ था। अभी जुगनू को यहां बैठे कुछ मिनट ही हुए थे कि शारदा हंसती हुई आई और उसने एक बड़ी-सी माला उसके गले में डाल दी। इधर छः महीने से भी अधिक काल से शारदा से वह मिला नहीं था। इस समय भव्य' वेशधारिणी श्वेत गुलाब के फूल के समान सुषमा की खान शारदा जैसे मूर्तिमती शरद ऋतु बन रही थी। कौमार्य का माधुर्य, सौन्दर्य की प्रभा और शिक्षा का प्रकाश- ये सब मिलकर इस समय शारदा की मूर्ति को ऐसी अनिर्वचनीय बना रहे थे कि जुगनू देखकर हक्का-बक्का हो गया। वह हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ। बड़ी कठिनता से उसने कहा, 'प्रसन्न तो हो मिस शारदा !' 'अच्छी हूं। पर इधर तुम इतने दिन से क्यों नहीं पाते ?' 'मुझे अफसोस है मिस शारदा ! मुझे काम में फंसे रहना पड़ा। फुर्सत ही नहीं मिली।' 'मैंने एम० ए० में फर्स्ट डिवीज़न में फर्स्ट पोजीशन ली है। तुम्हें मालूम है ?' 'नहीं, मुझे तो कुछ भी मालूम नहीं।' 'वाह, इतने लोग पाए, लेकिन तुम नहीं पाए। मैंने तुम्हारी कितनी प्रतीक्षा की। 'बड़ा भारी कुसूर हो गया शारदादेवी, अब इस बार माफ कर दो।' 'नहीं, माफ नहीं करूंगी।' 'तब क्या करोगी?' शारदा हंसती हुई उसीके पास बैठ गई। जुगनू का खून गरम होने लगा। एक थरथराहट उसके शरीर में उत्पन्न हो गई। उसे कुछ भी जवाब देते न बन पड़ा। शारदा ने हंसते-हंसते एक कागज़ का टुकड़ा कपड़ों से निकालकर कहा,