पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/९९

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बगुला के पंख ६७ बाद फूलमालाओं की बारी आई। सबसे पहले शारदा ने और इसके बाद सैकड़ों व्यक्तियों ने उसे फूलों से लाद दिया। दावत बड़ी शान से खत्म हुई। सबके अन्त में डाक्टर खन्ना ने अपने भाषण में जुगनू की तारीफ के पुल बांध दिए । शोभाराम देख रहे थे और मुग्ध हो रहे थे । वे खुश थे कि उनका रोपा हुआ पौधा किस तरह पनप रहा था। पर वे नहीं जानते थे कि उन्होंने आस्तीन में सांप पाला है। २७ शारदा से उसे एकान्त में मिलने का और फिर बातचीत करने का अवसर नहीं मिला। जब से उसने परशुराम की वह नज़र देखी थी, शारदा की ओर रुख करने का उसने साहस नहीं किया था । घटनाएं भी ऐसी तेज़ी से नया-नया रूप धारण करती जा रही थीं कि उसे इधर देखने का अवसर भी नहीं मिला। परन्तु शारदा को वह भूला न था। अब इतने दिन बाद शारदा से फिर जो मुलाकात हुई और शारदा ने जिस मुक्त भाव से उससे बातचीत की, उसने उसके खून में फिर एक गर्मी पैदा कर दी। यद्यपि परशुराम की आंख वह आज भी देख चुका था, और उससे डर भी गया था। आज के जशन में एक ओर परशुराम की अांख थी जिसमें तिरस्कार कूट-कूटकर भरा था, दूसरी ओर सारा मान-सम्मान था। फिर भी वह शारदा की आज की शतधौत श्वेत कमल की सुषमा को, शुभ्र शारदीय मूर्ति को मन-मन्दिर में सजाकर घर लौटा । रात भर उसे नींद न आई । यद्यपि दावत में उसे असाधारण सम्मान और अभिनन्दन मिला था, परन्तु उसे केवल शारदा का ही ध्यान था। शारदा का हंसता हुआ फूल-सा चेहरा, उसकी नवीन कदलीपत्रों के समान देहयष्टि, उसका नवविकसित यौवन, अल्हड़ भोलापन, ये सब हज़ार रूप धारण करके उसके सामने आते रहे। वह जागते ही अनेक सपने देखता रहा । सुबह ही उसे नवाब का सन्देशा मिल गया था कि इम्पीरियल होटल में उसकी दावत थी। नवाब ने यह भी इशारा कर दिया था कि इस दावत का ज़िक्र वह किसीसे न करे । आज उसे आफिस में भी बहुत काम करना था । नया -