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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भइ की आत्म-कथा ‘माया-पैक में डूबा हुआ संसार-कीट हूँ, आर्य ! बहुत-कुछ सम- झता हूँ; पर कर नहीं पाता । ‘प्रपंची ! तेरी जाति ही प्रपंची है। सौ बात क्यों समझता फिरता है ? एक को समझ और उसी को करे । क्यों रे, उस लड़की पर तेरी ममता है न ? यह अजीब प्रश्न है। क्या जवाब दें ? चुप रहना ही ठीक समझा । बाबा ने इसी समय उस मैरवी से कहा---‘महामाया ! सब ठीक है न ? | भैरवी ने कहा-अभी ठीक हो जाता है । यह कह कर थे और दोनों अन्य साधक भी उठ पड़े। मैं अकेला रह गया । बाबा ने मुझसे फिर पूछा---'क्यों रे, बताता क्यों नहीं ?? मैंने हाथ जोड़ कर कहा-'उस कन्या का सेवक होना गौरव का विषय है, आर्य ! मैं उसके मंगल के लिए प्राण तक दे सकता हूँ। बावा हँसते रहे। बोले-‘ना रे पागल, प्राण मैं नहीं माँगता । मैं जानना चाहता हूँ कि उस कन्या पर तेरी ममता है या नहीं। सीधा क्यों नहीं कहता कि है । तेरी जाति ही टेढ़ी है। हाँ रे, और महाव- राह पर तेरी ममता है ? ‘है आर्य !! ‘मान ले कि एक निशाचर अचानक आकर तुझे धर दबाय और अपने बाएँ हाथ में तेरी उस स्वामिनी को और दाहिने हाथ में महाव- राह की मूर्ति को लेकर बोले कि तू अपना प्राण देकर किसी एक को बचा सकता है, तो तू किसे बचाने के लिए प्राण देना पसन्द करेगा ? | बाबा बेढब जीव हैं। ऐसा भी प्रश्न करते हैं ? मैं चुप हो रहा । थोड़ी देर सोच कर बोला---'मैं दोनों को बचाना चाहूँगा।" | बाबी क्रोध से काँप उठे-फिर झूठ बोलता है, जन्म का पातकी,