पृष्ठ:बाणभट्ट की आत्मकथा.pdf/११

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निवेदन

‘आत्मकथा' प्रकाशित हो रही है । अनैक मित्रों के आग्रह, |अनुरोध और शुभेच्छा का ही यह परिणाम है । आरंभ में कथा ‘विशालभारत' में प्रकाशित होने लगी थी। अगर उस यशस्वी पत्र के संपादक सुद्धर श्री मोहनसिह संगर ने बार बार बढ़ावा देकर लिखवा न ली हो तो कथा लिखी ही न जाती । विचार था कि समाप्त होने के बाद इस कथा पर एक विस्तृत आलोचना ही रखी जाय । समय के अभाव से ऐसा हो नहीं सका । सहृदय पाठकों के लिये यह कार्य छोड़ दिया गया । एक विशेष अभिप्राय से रवीन्द्रनाथ की एक कविता का भाव इसमें एक स्थान पर जोड़ दिया गया था, वह अभिप्राय तो सिद्ध नहीं हुआ पर जोड़ा हुआ अंश जहां का तहां रह गया । बाणभट्ट और श्री हर्षदेव के ग्रंथ 'कथा' के प्रधान उपजीव्य रहे हैं। इन लोगों के प्रति कैसे कृतज्ञता प्रकट करूं ? भाई कमल कुलश्रेष्ठ ने पुस्तक के ठीक ठीक छपने में अमूल्य सहायता पहुंचाई है । अनेक ज्ञात और अज्ञात मित्रों ने नाना भाव से बढ़ावा दिया है। सबके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हैं । शान्तिनिकेतन के