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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्म-कथा प्रकार झीमते-से रहे। फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने पूछा---'क्या निश्चय किया है, विरति ? | ‘कुछ समझ नहीं सका, आर्य ! मेरे आदि गुरु अमोघवज्र ने मुझे ऐसा कुछ करने को नहीं कहा था । उन्होंने केवल नैरात्म्य की भावना में स्थिर रहने का उपदेश दिया था । एक दिन अचानक उन्होंने मुझे बुला कर कहा---‘आयुष्मान् , मैं अब अधिक दिन नहीं रह सर्केगा। तू कौलाचार अघोर भैरव के पास जा । वे ही तेरी व्यवस्था कर देंगे। उसी दिन से मैं अयं की खोज में था । पर मैं अपने आदि गुरु की बात ठीक नहीं समझ सका कि क्यों उन्होंने मुझे आपके पास भेजा १ ‘नैरात्म्य-भावना तुम्हारी समझ में आई है ? नहीं, आर्य !

  • तुम्हारे ऊपर कोई विश्वास करे, तो उसे छोड़ सकने का साहस

है तुम में है। नहीं, आर्य ! ‘तुम और मैं का भेद भूलने में तुम्हें रस मिलता है ?? हाँ, आर्य ! ‘पुरुष और स्त्री का भेद तुम भूल सकते हो ? ‘नहीं, आर्य ! ‘बुद्ध और वद्ध का भेद तुम्हें अच्छा लगता है या बुरा १ “अच्छा आर्य ! साधु आयुष्मान् , तुम सत्यवादी हो अमोघवज्र ने समझ-बूझ कर ही तुम्हें मेरे पास भेजा है । तुम सौगत-तन्त्र के अधिकारी नहीं हो, तुम कौले-मार्ग में विचर सकते हो । पर आयुष्मान् , बिना शक्ति के साधना तो इस मार्ग में नहीं चल सकती है इस बात का एक निश्चय तो तुम्हें करना ही पड़ेगा। थही मैं नहीं समझ सकता, आर्य lar;