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बाण भट्ट की आत्म-कथा

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बाण भट्ट की आत्मकथा अपकार कर सकती है । स्त्री प्रकृति है। वह, उसकी सफलता पुरुष को बाँधने में है; किन्तु सार्थकता पुरुष की मुक्ति में है। मैं कुछ भी नहीं समझ सका । केवल अाँखें फाड़-फाड़ कर महामाया की और देखता रहा । वे समझ गई कि मैंने कहीं मूल में ही समझने में प्रभाद किया है । बोलीं-'नहीं समझ सका न १ मूल में ही प्रमाद कर रहा है, भोले ! तू क्या अपने को पुरुष समझ रहा है और मुझे स्त्री ? यही प्रमाद है। मुझमें पुरुष की अपेक्षा प्रकृति की अभिव्यक्ति की मात्रा अधिक है, इसलिए मैं स्त्री हूँ। तुझमें प्रकृति की अपेक्षा पुरुष की अभिव्यक्ति अधिक है, इसलिए तु पुरुष है । यह लोक की प्रज्ञप्तिप्रज्ञा है, वास्तव सत्य नहीं । ऐसी स्त्री प्रकृति नहीं है, प्रकृति का अपेक्षाकृत निकटस्थ प्रतिनिधि है और ऐसा पुरुष प्रकृति का दूरस्थ प्रतिनिधि है । यद्यपि तुझमें तेरे ही भीतर के प्रकृति-तत्त्व की अपेक्षा पुरुष-तत्व अधिक है; पर वह पुरुष-तत्व मेरे भीतर के पुरुष-तत्त्व की अपेक्षा अधिक नहीं है। मैं तुझसे अधिक निःसंग, अधिक निद्वन्द्व और अधिक मुक्त हूँ। मैं अपने भीतर की अधिक मात्रा वाली प्रकृति को अपने ही भीतर वाले पुरुष-तत्व से अभिभूत नहीं कर सकती ।। इसीलिए सुझे अघोर भैरव की आवश्यकता है। जो कोई भी पुरुष, अज्ञप्तिवाला मनुष्य मेरे विकास का साधन नहीं हो सकता। ‘और अघोर भैरव को श्रापकी क्या आवश्यकता है ? “मुझे मेरी ही अन्तःस्थिता प्रकृति के रूप में सार्थकता देना । वे गुरु हैं, वे महान् हैं, वे मुक हैं, वे सिद्ध हैं। उनकी बात अलग है । 'किन्तु यह कारण-द्रव्य इस तत्त्व में क्या सहायता पहुँचाता है ?

  • त नहीं समझ सकेगा। मंदिर प्रकृति की सुव्यक्ति का कारण है। वह उसे छिपी नहीं रहने देती । यह गोपन रहस्य है !

होगा। मैंने मन ही मन महामाया भैरवी के अपूर्व चिन्तन-शक्ति पर आश्चर्य किया । वे थोड़ी देर तक खड़ी रहीं, जैसे कुछ याद कर