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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भई की अत्म-कभी ने तैरने में ही रस लिया। मेरे पास कहने को बहुत कम था, वे सुना बहुत अधिक चाहते थे । मुझे देख कर उन्होंने अपने आग्रह को दबाया | बोले-भट्ट, देवपुत्र-नन्दिनी के उपयुक्त वचन हैं। मेरी प्रार्थना उन्होंने स्वीकार कर ली है, कुमार कृष्ण अाज अपने को धन्य मानता है। मैं उनके हृदय की गम्भीरता देख कर मुग्ध हूँ। परन्तु सच बताऊँ, भट्ट, तुम बहुत भोले हो । तुमने देवपुत्र-नन्दिनी के मर्म की व्यथा नहीं देखी है । निपुण्किा समझती है। उससे पूछ कर तुम उनका मन पा सकते हो ।' मुझे आश्चर्य हुआ । कुमार ने ऐसी क्या बात देख ली, जो मैं नहीं देख सका। निपुण का ज़रूर मुझसे ज़्यादा समझती है; पर कुमार ने क्या ऐसा समझ लिया कि मुझे भोला कह दिया। जनम का अवारा बाण भट्ट कल से बराबर यही सुन रहा है। कि वह बहुत भोला है ! कुछ लोगों को दूसरों को भोला समझने में आनन्द आता है। कुमार भी क्या ऐसे ही हैं ? अत्यन्त खिन्न विनीत स्वर में मैंने प्रश्न किया-‘कुमार ने मुझमें क्या भोलापन देखा है ? कुमार हँसे । बोले--तुम जितना कवित्व करते हो, उतना वस्तु- स्थिति का ज्ञान नहीं प्राप्त करते। तुमने भट्टिनी से उनके हृदय की बात कभी पूछी है ? तुम क्या समझते हो कि भट्टिनी की अन्तगढ़ वेदना दिन-रात उनकी जिह्वा पर बनी रहेगी ? भट्ट, कवित्व बुरी चीज़ नहीं है; पर तुमने जो सेवा का गुरु भार लिया है, वह वास्तविकता चाहना । भट्टिनी वाभ्रव्य के लिए कितनी व्याकुल हैं, यह तुम्हें मालुम है । कुमार के मुख से वाभ्रव्य का नाम सुन कर मैं चौंक पड़ा। मुझे भी वाभ्रव्य को चिन्ता हो रही है; परन्तु भट्टिनी ने तो मुझसे कुछ भी नहीं कहा और कुमार को कैसे मालूम हुआ कि भट्टिनी उस वृद्ध ब्राह्मण के लिए व्याकुल हैं। मैं कुमार को नम्रतापूर्वक वाभ्रव्य-विषयक अपनी चिन्ता की बात कह गया और पूछा कि भट्टिनी की व्याकुलता की बात उनसे किसने बताई १ कुमार हँसे । बोले-