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बाण भट्ट की आत्म-कथा

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                 ===== बाण भट्ट की आत्मकथा =====


या नई चीज़ देखने के लिए हम लोगों की भीड़ लग जाती । दीदी एकएक करके कभी कोई तालपत्र की पोथी, कभी पुरानी पोथी के ऊपर की चित्रित काठ की पाटी, कभी पुराने सिक्के निकाल-निकाल कर हमारे हाथों पर रखती जाती और उनका इतिहास सुनाती जाती । उस समय उनका चेहरा श्रद्धा से गद्गाद् होता और उनकी छोटी-छोटी नीली आँखे पानी से भरी होती । फिर धार से उनकी जेब से एक सफ़ेद बिल्ली का बा निकलता-बिल्कुल सिकुड़ा हुआ । हम लोग इस मज़ाक से परिचित थे। दीदी को प्रसन्न करने के लिए हम में से कोई बड़ी उत्सुकता के साथ बिल्ली के उस बच्चे को इस प्रकार लेता, मानो कोई हस्त लिखित पोथी ले रहा हो । और तब वह बिलौटा कूद जाता और हम लोग मानो अचकचा कर डर जाते । फिर दीदी इतना हँसतीं कि नूतन कुटीर की छत हिल जाती । दीदी के इस हर्षातिरेक का परिणाम यह होता कि यार लोग संगृहीत बहुमुल्य वस्तुओं में से कुछ को दबा जाते । ( मैंने कभी ऍसा अपकर्म नहीं किया ! ) पर दीदी को पता भी नहीं चलता । कभी-कभी दीदी जब ध्यानस्थ हो जातीं, तो उनका वलीकुंचित मुखमण्डल बहुत ही आकर्षक होता । ऐसा जान पड़ता कि साक्षात् सरस्वती अविभूत हुई हैं। ऊधम करते हुए छोकरे पास से निकल जाते, धूल उडाती हुई बैल गाड़ियां पास में चली जाती, कुत्ते उछल-कूद से शुरू कर लड़ाई-झगड़े पर आमादा हो जाते; पर दीदी कर्पूर-प्रतिमा की भाँति निर्वाक्, निश्चल, नि:स्पन्द ही रहती ! जब उनकी समाधि टूटती, तब उनकी बातें सुनने लायक होती।

   अन्तिम बार दीदी राजगृह से लौटी थी। उनके चेहरे से ऐसा जान पड़ता था कि बुद्धदेव से उनकी ज़रूर भेट हुई होगी। मैं जब मिलने गया, तो यद्यपि वे थकी हुई थी; पर यह कहना न भूली कि उन्हे राजगृह मे एक स्थार मिल गया था, जो उन्हें देख कर तीन बार ठिठक-ठिठक कर खड़ा हुआ-जैसे कुछ कहना चाहता हो। दीदी