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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा इस मस्ती के साथ करने में जुट गए, मानो कुछ हुआ ही नहीं; मानो कुमार सम्भव के प्रथम तीन सर्ग माया थे, कवि का उन पर कोई मोह नहीं, कोई ममता नहीं, क्योंकि वे मनुष्य को और उसकी इस दुनिया को ही सब-कुछ नहीं मानते थे । कुछ और भी है। इस दृश्यमान सौन्दर्य के उस पार, इस भासमान जगत् के अन्तराल में कोई एक शाश्वत सत्ता है, जो इसे मंगल की ओर ले जाने का संकल्प किए हुए है। | कालिदास ने भुवनेमोहिनी के गौरव को हृदयंगम किया था । वे उग्छखल पौरुष की निर्मर्याद महत्वाकांक्षा के दोष पहचानते थे । राज्य-गठन, सैन्य-संचालन, मठ-स्थापन और निर्जन-वास पुरुष की समताद्दीन, मर्यादाहीन, शृखलाहीन महत्त्वाकांक्षा के परिणाम हैं। धनको नियन्त्रित कर सकने की एकमात्र शक्ति नारी है । कालिदास ने इस रहस्य को पहचाना था । इतिहास साक्षी है कि इस महिमामयी शक्ति की उपेक्षा करने वाले साम्राज्य नष्ट हो गए हैं, मठ विध्वस्त हो गए हैं, ज्ञान और वैराग्य के जंजाल फेन-बुद्बुद की भाँति क्षण- भर में विलुप्त हो गए हैं। कहाँ कालिदास और कहीं मैं अभागा बण्ड ! भट्टिनी या तो जान-बूझकर मुझे केवल आश्वस्त करने के लिए यह बात कह रही हैं, या फिर ये कालिदास को ठीक-ठीक जानती ही नहीं। कालिदास ने जिस महासत्य का साक्षात्कार किया था, उसे वे प्रकाश कर सकते थे। सरस्वती स्वयं उनके कण्ठ में वास करती थी । वे वाग्देवता के दुलारे थे । मैं पथभ्रान्त, अकर्मा उनकी तुलना में कैसे रखा जा सकता हूँ ? फिर भी भट्टिनी का मेरे प्रति आदरभाव तो है ही । क्षण-भर के लिए मैं सोचना-विचारना छोड़कर भदिनी के मनोहर मुख को देखने लगी । वह पाटल-प्रसून के समान लाल हो गया था; पर उस लाली ने उसके सौन्दर्य को सौ गुना बढ़ा दिया था। भट्टिनी ने मेरी ओर से मुख हटा लिया वे निपुणिका