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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा १५७ दे दिया । मैं दूसरे ही दिन उसे चुरा कर भाग खड़ी हुई थी, भट्ट ! फिर थोड़ा रुक कर निपुणिका बोली- मैं बहुत दिन नहीं जीऊँगी भट्ट, थोड़े दिनों की अतिथि हूँ । मेरा एक अनुरोध तुम्हें रखना होगा ।' निपुणिका की इस कहानी का यह उपसंहार सुन कर मैं सिहर गया । बोला-'छिः निउनिया, ऐसा भी बोलते हैं ! किन्तु वह सुनने को प्रस्तुत नहीं थी । बोली-भागते समय मैंने बालक- वेश धारण कर लिया था । तुम्हारे आवास पर गई, तो पता लगा कि तुम मुझे खोजने कहीं ए हो । यह भी पता चला कि शविल रावि लक की दूकान पर दण्डधरों के साथ तलाशी लेने जाश्रीगे । मैं एक बार सिर्फ तुम्हें देख कर उजयिनी छोड़ देना चाहती थी । शर्विलक की दुकान पर मैं चली जा रही थी कि रास्ते में एक शकद्वीप का ब्राह्मण ज्योतिषी मिल गया। उसने मुझे देखते ही कहा–'अ बेटा, तेरा भाग्य गिन दू” ।' मैंने एक दीनार ज्योतिषी को दिया । मेरे पास बहुत थे । उसने नाना भाँति के चक्र खींच कर बताया कि तेरा भविष्य अच्छा है; पर तुझे दुःख भोगना है। मैंने पूछा कि मैं जिससे भेंट करने जा रहा हूँ, उसके विषय में कुछ बता । उसने थोड़ी देर तक गणना करने के बाद कहा--'वह बड़ा यशस्वी कवि होगा; परन्तु कोई रचना समाप्त नहीं कर सकेगा । जिस दिन वह कविता लिखने बैठेगा, उस दिन से उसकी आयु क्षीण होने लगेगी । वह उसके बाद सहस दिन तक जीवित रह सकेगा । ज्योतिषी की बात से मैं शंकित हो गई और हाथ जोड़ कर बोली - 'कोई बचने की विधि है क्या, आर्य १) ज्योतिषी ने सिर हिला कर कहा-‘है । फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद ज्योतिषी ने कहा--उससे कह देना कि किसी जीवित व्यक्ति के नाम पर काव्य ने लिखे । मैंने यह सुन कर तत्काल शालिक की दुकान का रास्ता लिया। सौभाग्य से वह उस समय प्रसन्न थी और चषक भरने के काम में मुझे नियुक्त कर लिया । तुम दधरों के साथ आए और मैंने