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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अात्म-कथा तुम्हें जी भर कर देखा । तुमने घृणा के कारण मेरी ओर ताका भी नहीं। नगर-प्रतीहार ज़रा देर बाद आए थे और उनसे तुम कह रहे थे कि अपना लिखा हुश्री प्रकरण तुमने सिप्रा में फेंक दिया है । और जब तक निपुर्णिका नहीं मिल जाती, तब तक न तुम नाटक लिखोगे, न खेलोगे । मैं सुन कर आश्वस्त हो गई और नहीं मिलने का संकल्प लेकर भाग श्राई । आज भट्टिनी बारे में तुमने जब कविता लिखने की बात कही, तो मेरा चित्त काँप उठा। मैं यही कहने अाई हैं, भट्ट, कि तुम भट्टिनी के या किसी अन्य जीवित व्यक्ति के विषय में कविता मत लिखो मेरा अनुरोध रख लो, मैं अकिंचन ग़रीब केवल प्रार्थना कर सकती हैं। निपुणिका ने जानुपातपूर्वक प्रणाम किया। मैंने उसे आश्वासन देते हुए कहा-मैं तेरा अनुरोध पालन करू गा, निउनिया; पर मैं ज्योतिषी की बात पर विश्वास नहीं करता ।' निउनिया अखि फाड़ कर मेरी ओर देखने लगी । ज्योतिषी की बात पर विश्वास न करना उसकी समझ में आने लायक बात नहीं थी। मैंने कुछ अधिक नहीं कहा। केवल आकाश की ओर देख कर एक दीर्ध निःश्वास लिया। मैं जानता हूँ कि इधर हाल ही में यवन लोगों ने जिस होराशास्त्र और प्रश्न-शास्त्र नामक ज्योतिष विद्या का प्रचार इस देश में किया है, वह यावनी पुराण-गाथा के आधार पर रचा हुआ एक अटकल- पच्च विधान है। भारतीय विद्या ने जिस कर्म-फल और पुनर्जन्म का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है, उसके साथ इसका कोई मेल ही नहीं है । यहाँ तक कि हमारे पुराण-प्रथित ग्रह-देवताओं की जाति, स्वभाव और लिंग तक में अद्भुत विरोध स्वीकार कर लिए गए हैं। हमारे पुराण-प्रसिद्ध शुक और चन्द्रमा इस ज्योतिष में भी-अह मान लिए गए हैं, क्योंकि यवन-गाथाओं की वीनस और डिएना देवियाँ हैं, और वे ही इन ग्रहों की अधिष्ठात्री देवी मान ली गई हैं। ग्रह-मैत्री का तो