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बाण भट्ट की आत्म-कथा

पराक्रमी यशोवर्मा को नहीं जानता, जिनकी दृढ़ मुष्टि में बधी हुई तलवार जब मदमत्त हाथियों के कुम्भ-पीठ पर पड़ती थी, तो उसमें स्थूल-स्थल गजमुक्ताएँ इस प्रकार लग जाती थीं, मानो मुट्ठी बाँधने के ज़ोर से तलवार की धारा ही बड़े-बड़े बिन्दुओं के रूप में देपकने लगी। हो । इसे मुक्काल म दन्तुर कृपागधार ने न जाने कितनी शत्रु-राज- लक्ष्मियों को खींच लिया था । जानता हूँ भद्र, अनेकानेक सुभटों के वक्षस्थल पर बँधे हुए लौह कवचों से अन्धकार हो जाने पर हाथियों की मदधारा के दुर्दिन में भींगती हुई राजलक्ष्मय जिस यशोवर्मा के पास अभिसारिकायों के समान आती थीं, उस अतुल पराक्रम मौखरि- वीर को मैं जानता हूँ। मुझे तुम्हारे प्रतापी भुजदण्ड पर भी विश्वास है, भद्र ! मैं निश्चिन्त हूँ। परन्तु एक बात जानने की मेरी बड़ी उत्सुकता है। तुम क्या छोटे महाराज के सैनिक हो १ । वृद्ध की अखें एकाएक लाल हो गई। उनसे अग्नि-स्फुल्लिग से झड़ने लगे | रोष-रुद्ध कण्ठ से वह बोला–ना श्रीयं, छोटा महाराज लम्पट है। वई मौखरि-वंश का कलंक है। उसे पोस कर नीति-निपुण महाराजाधिराज श्री हर्षदेव ने सारे देश में भौखरियों के ऊपर घृणा उत्पन्न करा दी है। मैं पट्टदेवी राज्यश्री की आज्ञा से बौद्ध नरपति की सेवा कर रहा हूँ। पट्टदेवी हर-जटा-प्रवाहिती जाह्नवी की भाँति पवित्र हैं, अद्वितीय पति-धर्मचारिणी अरुन्धती का पार्थिव विग्रह हैं, इस धरित्री पर भूल से चली आई हुई कल्प-लतिका हैं, पार्वती के तरल हास की मूर्तिमती प्रतिमा हैं, सरस्वती की कर्पर-गौरव कान्ति का संसार रूप हैं। वे ही मौखरियों की नेत्री हैं, वे ही उनका सर्वस्व हैं । आज उस देवी के रूप में ही मौखरि-राजलक्ष्मी जीवित है। आज भी उनके इंगित-मात्र से मौखरि-वीर थरि को श्रान्दोलित कर सकते हैं। हम उनकी इच्छा से ही इस समय महाराजाधिराज के विश्वस्त अनु- घर हैं। उनकी दयालुता के कारण ही छोटा महाराज अभी जीवित