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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा देखता रहा । नभो मण्डल से विकटाकृति केटपूतनाएँ और भैरवियाँ उतरतीं, मुझे विचित्र ढंग से प्रणिपात करतीं और आरती उतारती रहीं । फेरुओं के चण्डरव के समान विचित्र जय-जयकार से दिङ मण्डल उत्तभित होता रहा और विकराल बदन पिशाचों के अस्थिकरताल से अन्धकार फटता रहा। मैं हृतसंज्ञ निश्चेष्ट । चण्डमण्डना ने फिर स्तुति पढ़ी :-- यद् ब्रह्माण्डकटाहसम्पुटतटोल्लासिप्रचण्ड महः यत्तद्गर्भविभाण्डमएलनमहज्योतिः परं ज्योतिषाम् । ध्यानावस्थित तद्नतेन मनसा यद् योगिभिध्या॑यते--- तते धाम निरस्तविश्वकं भर्गः परं धीमहि । नाना अंगन्यास के साथ खट्वांग की पूजा हुई । अघोरघण्ट ने आदेश दिया--जो तेरा सब से प्रिय है, उसका ध्यान कर | मुहूर्त-भर में भट्टिनी की कोमलकान्त मुखच्छवि मेरे सामने उपस्थित हुई। मैं कात- रतापूर्वक चीख उठा। मैं भट्टिनी को निर्जन शरकान्तार में छोड़कर बलि होने जा रहा हूँ। मेरी नसें झनझना उठीं । मैंने कातर-भाव से अघोर भैरव का स्मरण किया । मेरी आँखें अपने-श्राप झपक गई । कटपूतनाएँ अारती करती रहीं, फेरुओं का चण्डविराव जय-जयकार करता रहा और उलूकों का घूत्कार दिमण्डल को फाड़ता रहा । अघोरघण्ट और चण्डमण्डना विकट फूत्कार से वायुमण्डल को कॅपाने लगे । उग्र भैरवियों ने तुमुल चीत्कार किया और कटपूतनाएँ सावधानी से मुझे घेर कर खड़ी हो गई । चण्डमण्डना विचित्र अाविष्ट भंगी में उद्दाम-भाव से सिर पटकने लगी और अघोरघण्ट धनघन आहुतियाँ और क्रम वर्द्धमान फूत्कार से हवन-कुण्ड को लोलकम्पित करता गया। मैंने अखें खोलीं । सामने महामाया, भट्टिनी और निपुणिका और पीछे नंगी तलवार लिए हुए विग्रहवम और दस मोखरि वीर पत्थर की मूर्ति बने खड़े थे । भट्टिनी कातर-भाव से मुझे देख रही थीं । मैं अवश