पृष्ठ:बाणभट्ट की आत्मकथा.pdf/२०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१९१
बाण भट्ट की आत्म-कथा

थी न ? भोली है तू। मेरे ऊपर तेरा विश्वास नहीं है न ? क्या हुआ। है भट्ट को, जो तु इस प्रकार रो रही है ? अाज इसे अवश्य चैतन्य लाभ होगा। सम्मोहन की क्रान्ति है, बिटिया ! बहत्तर हज़ार नाड़ियों को रोमकूपों के भीतर से चूर करके सम्मोहन का प्रयोग मन को अभिभूत करता है, नाग और कूर्म प्राणों को वह रुद्ध कर देता है, कृकल को नाभिकूप में गाड़ देता है और देवदत्त तथा धनंजय को त्वगिन्द्रिय में निरुद्ध कर लेता है। विकट क्रान्ति होती है इसकी । बिल्कुल चिन्ता मत कर बिटिया, आज भट्ट की नाड़ियाँ स्वस्थ हैं, कलाएँ उद्बुद्ध हैं, द्वार रुद्ध हैं । यह देख अलम्बुपा और पयस्विनी कितनी स्वस्थ हैं। अभी इसकी अाँख खुली जाती हैं। नियुणिका में अभी देर है । प्रतिप्रसव की क्लान्ति और भी कठिन होती है । घबराती नहीं है न १ छिः ऐसा भी व्याकुल हुअा जाता है ! भट्टिनी ने केवल रुद्ध कण्ठ से कहा-'न !' महामाया ने मेरे ललाट पर हाथ फेरते हुए कहा—“मुझे आश्चर्य होता है कि भट्ट किस प्रकार सम्मोहन का शिकार हो गया । इसकी कुल-कुण्डलिनी जाग्रत है, इसे अवधूत-गुरु का प्रसाद प्राप्त है। देख बिटिया, भट्ट की मनांगमा पाँची नाड़ियाँ अब पूर्ण स्वस्थ हैं । यह देख, कल्पिक है, इससे संकल्प होता है । यह विकल्पिका है, इससे मन में विकल्प होते हैं । यह स्थीवा है, इससे जड़ता आती है ; यह मूच्र्छना है, इससे मूछ होती हैं ; और यह मन्या है, इससे मने शक्ति प्राप्त होती है । भट्ट की स्थीवा कमज़ोर है। अब ठीक हो जायेगी। मगर अद्भुत शक्ति है निपुणिका की नाड़ियों में। एक बात बताऊँ, बेटी ; निपुणिका महामाया है, उसे सामान्य नारी न समझ । सम्मोहन का प्रतिप्रसव बड़ा कठिन है, बेटी ! प्रथम बार मैं दस पल भी नहीं सम्हाल सकी थी ! उफ़ ! महामाया मानो कुछ भूली-हुई बात सोचने लगीं। फिर एकाएक बोली--‘आज तो मुझे जाना होगा, बेटी ।