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बाण भट्ट की आत्म-कथा

उद्बुद्ध हो गया, मेरी सारी सत्ता प्रत्याख्यान के लिए अलोड़ित हो गई; परन्तु मैं वैसे ही अवश पड़ा रहा। भट्टिनी के सामने मेरी धृष्टता प्रकट हो, यह बात मैं सोच भी नहीं सकता था। महामाया ने ही फिर शुरू किया--तो तू मेरी बात नहीं मानती १ हाँ बेटी, नारीहीन तपस्या संसार की भद्दी भूल है। यह धर्म-कर्म का विशाल अायोजन, सैन्य संगठन और राज्य-व्यवस्थापन सब फेन-बुद्भुद की भाँति विलुप्त हो जायँगे; क्योंकि नारी का इसमें सहयोग नहीं है । यह सारा ठाट- बाट संसार में केवल अशान्ति पैदा करेगा । भट्टिनी ने चकित की भाँति प्रश्न किया--'तो माता, क्या स्त्रियाँ सेना में भरती होने लगे या राजगद्दी पाने लगे, तो यह अशान्ति दूर हो जायगी १ । महामाया हँसीं । बोलीं-सरला है त, मैं दूसरी बात कह रही थी । मैं पिण्ड नारी को कोई महत्वपूर्ण वस्तु नहीं मानती । तुम्हारे इस भट्ट ने भी मुझसे पहली बार इसी प्रकारे प्रश्न किया था। मैं नारी- तत्व की बात कह रहा हूँ रे ! सेना में अगर पिएड नारियों का दन भरती हो भी जाय, तो भी जब तक उसमें नारी-तत्व की प्रधानता नहीं होती, तब तक अशान्ति बनी ही रहेगी । मेरी आँखें बन्द थीं, खोलने का साहस मुझमें नहीं था। परन्तु मैं कल्पना के नेत्रों से देख रहा था कि भट्टनी के विशाल नयन आश्चर्य से कर्ण-विस्फारित हो गए ये । ज़रा आगे झुककर उन्होंने कहा- 'मैं नहीं समझी । मामाया ने दीर्घ-निःश्वास लिया। फिर थोड़ा सम्हल कर बोलीं-- परम शिव से दो तवे एक ही साथ में कट हुए थे-शिव और शकि। शिव विधिरूप है और शक्ति निषेधरूपा । इन्हीं दो तस्त्रों के अस्पन्द-विष्पेन्द से यह संसार अभासित हो रहा है । पिएड में शिव का प्राधान्य ही पुरुष है और शक्ति का प्राधान्य नारी है । तू क्या