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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्म-कथा चायु के समान मैत्री-रूप में बहते रहे। जिस प्रकार प्रचण्ड वायु ब्रह् जाने के बाद उपरत-उपशान्त हो जाती है, वैसे ही महाराज भगवान् भी निर्वाण को प्राप्त हो गए। जिस प्रकार महाराज तापग्रस्त प्राणी व्यजन के सहारे वायु को फिर से ले अाकर अपना ताप शमन करते हैं, उसी प्रकार महाराज, देवता और मनुष्य भगवान् के शरीर-धातु की सहायता से शीलादि का अनुष्ठान करके अपना भव-ताप दूर करते हैं। इस प्रकार महाराज, यद्यपि तुधात कुछ भी ग्रहण नहीं करते, तथापि उनके उद्देश्य से निवेदित पूजा सफल होती है, अबन्ध होती साधु भदन्त ! अाश्चर्य है अाप की स्थापना, अद्भुत है आपका प्रतिपादन, विस्मय जनक हैं आप की तर्कयुक्ति । मेरा समाधान हो गया । परन्तु अाचार्य, तथागत क्या सर्वज्ञ थे ? मैं इसलिए पूछ रहा हूँ, प्राचार्य, कि तैथिक साधुअों ने मुझे बताया है कि वे ध्यान करने पर ही कुछ जान सकते थे, नहीं तो तत्क्षण वे उसी प्रकार मुग्ध रहते थे, जिस प्रकार हम लोग हैं। यह क्या सत्य है, प्राचार्य १ “ह, महाराज, भगवान की सर्वज्ञता इसी में थी कि वे ध्यान से सब बातों को जान लेते थे | यह सत्य है । परन्तु इससे महाराज, क्या भगवान् की सर्वज्ञता खंडित होती है ? ‘होती है, भदन्त !

  • तो महाराज, मैं एक प्रश्न पूछ, सोच कर उत्तर दीजिए।

‘पूछिए श्राचार्य, अवहित हूँ ।।

  • श्राप महाराज, चक्रवर्ती राजा हैं। आपके घर में अन्न, दूध,

दही, घृत, शर्करा आदि का कोई अभाव नहीं है। यदि कोई अतिथि आपके घर असमय में श्रावे, उस समय भोजनालय का पक्व अन्न


- ।... - aal-..-. १ सुरु-मिलिन्द प्रश्न, ४।१।२