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बाण भट्ट की आत्म-कथा

२२२ बाण भट्ट की आत्म-कथा समाप्त हो चुका हो और आपके अतिथि-सत्कार में देर हो जाय, तो क्या आप निर्धन सिद्ध हुए ?' ‘नहीं भदन्त, समय-बे-समय चक्रवर्ती के भोजनागार में भी अन्न नहीं रहता; परन्तु इसीलिए वह निर्धन नहीं कहा जा सकता ।' | उसी तरह महाराज, बुद्धों की सर्वज्ञता सिर्जन-प्रतिबद्ध होती है, तरक्षण ज्ञान के अभाव में मुग्ध नहीं सिद्ध होते । वे ध्यान करते ही सब-कुछ जान लेते हैं । यहीं साधारण जनों से वे विशिष्ट होते हैं ! ‘साधु अर्य, आश्चर्य है भदन्त श्रापकी स्थापना, अद्भुत है। आपकी तर्कयुक्ति ! मेरी शंका दूर हो गई ।। कुछ देर तक इसी प्रकार शंका-समाधान चलते रहे। फिर सभा- विसर्जन का शंख बजा। महाराज उठे और उनके परिचारकों में चंचलता लक्षित हुई । महाराज विशाल हाथी पर समासीन होकर जब चले गए, तब कुमार कृष्ण ने मुझे बुलवाया और अत्यन्त संक्षेप में आदेश दिया कि संध्या समय उनके घर मिलें । जब वे भी चले गए, तो मैं प्राचार्यपाद के पास गया ।

  • तु०--मिलिन्द प्रश्न, ४/१/३