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बाण भट्ट की आत्म-कथा

२५२ बणि भट्ट की अस्मि-कथा वे जब प्रमोद की अवस्था में होते हैं, तो ऐसा लगता है कि उनके समान चपल मनुष्य जगत् में हैं ही नहीं परन्तु जब वे संयम का आचरण करते रहते हैं, तो उनका गाम्भीर्य समुद्र के समान दुरधिगम्य हो जाता है । इस सभा में उसी संयम का वातावरण थी। कुछ देर तक शास्त्रार्थ चलता रहा। इसके बाद वृद् सभापति ने मेघ गभीर स्वर में घाए। के–स्वस्त, अयि सभासदो, मैं इस सभा में उपस्थित शास्त्र-पारंत पंडितों और शील एवं ग्राचार में प्रसिद्ध अार्य नागरिकों के निर्णय की घोषणा कर रहा हूँ। आर्य सभासदो बड़ा दुर्घट काल उपस्थित हुअा है । अाचार्य भर्वपाद के प्रचारित पत्र को स्थाएवीश्वर का प्रत्येक नागरिक पढ़ चुका हैं । दुदमनी म्लेच्छवाहिनी गिरिवत्र्म को पार करने की चेष्टा कर रही है। उत्तरापथ के नगर और ग्राम, देवमन्दिर और बिहार, ब्राह्मण अौर श्रमण, वृद्ध और बालक, बेटियाँ और बहाएँ अाज किसी प्रती नरपति-शक्ति के अाश्रय में ही सुरक्षित रह सकती हैं। ऐसे समय प्रजा में राजशक्ति के प्रति असंतोष का रहना सत्यानाश का कारण होगा ! सभा का निश्चय यह है कि आर्य विरतिवज्र पर उनके पितृऋण को शोध न करने का अभियोग मिथ्या और शास्त्रव हि भूत है । सुचरिता और उनका संबंध शास्त्र के अनुकूल है, और उन दोनों पर गार्हस्थ्य धर्म में लौट आने का अभियोग निन्दनीय है । सुचरिता ने जो अनुष्ठान प्रारम्भ किया था, वह चिराचरित भक्ति मार्ग के अनुकूल है। स्थाण्वीश्वर की विद्वन्मएडली उसकी असाधारण संयम-निष्ठा और निरतिशय चिन्मुखी समर्पण-वृत्ति के लिए, अपनी श्रद्धा निवेदन कर रही है। आर्य बैंक- टेशपाद और अवधूत अघोर भैरव जैसे आत्माराम भगवदीयों के निर्वासन से हम क्षुब्ध हैं। परन्तु इस दुर्घट कल में राज-व्यवस्था में किसी प्रकार का शैथिल्य न आवे, इस विचार से हमने निश्चय किया है कि दस विद्वानों का एक समुदाय महाराजाधिराज से इस अन्याय