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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अाम-कथा निमित्त बने हैं ! धनदत्त के गुरु भदन्त वसुभूति बौद्ध धर्म को जिता कर ही छोडेंगे और भवभूति के प्रतिभट परमस्मार्त आचार्य मेधातिथि - जो आज की सभा के गुप्त सूत्रधार थे-सनातन धर्म को पुनः प्रति ष्ठित करके ही दम लेंगे । मनुष्य जाय चूल्हे-भाड़ में, इन्हें अपने धर्म- मत का डिंडम पीटना है । एक की पीठ पर राज्य-शक्ति है और दूसरे को हथेली में प्रजा का विद्रोह ! विरतिबज्र का बौद्ध से वैष्णव होना ही मानो संसार की सबसे बड़ी घटना है | इस जय-पराजय की प्रतिद्वन्द्विता में मनुष्य का चाहे सत्यानाश ही क्यों न हो जाय । परन्तु मैं पूछती हूँ आर्य, इसमें किसका पक्ष ग्रहणीय है ? महाराजाधिराज की ओर से ही क्या इस वहि-शिखा में ईंधन डालने का कार्य पहले नहीं हुआ है ? आप नहीं जानते, आर्य, इस का सूत्रपात बहुत पहले से हो चुका है । जब आर्य विरतिवज्र ने नए धर्म-मत में दीक्षा ली, तो सहसा स्थाएवी- श्वर में धर्मिक उत्तेजना प्रनल हो गई । विद्वानों के अनुरोध से और नगर-सेठों के प्रसाद से विशाल पटवास बनाया गया और वहाँ मेरे गुरु को निमन्त्रित किया गया । गुरु का सिद्धान्त है कि वे पापी-से-पापी को भी अपनी बात सुनाने में नहीं हिचकते । वे सहज ही मान गए । परन्तु आर्य विरतिवेञ्ज ने बाहर आना पसन्द नहीं किया । गुरु के अनु रोध पर उन्होंने सिर्फ मुझे वहाँ रहने की अनुमति दी। यह बराबर चेष्टा की गई कि बौद्ध श्राचार्य वसुभूति से मेरे गुरु का संघर्ष करा दिया जाये परन्तु वे महादेव के अवतार हैं, आर्य ! उनको अपने भजन-पूजन से मतलब था । अपना काम समाप्त करने के पश्चात् वे एक क्षण भी नहीं रुकते थे और भजन प्रारम्भ होने के एक क्षण पूर्व वहाँ पधारते थे । यह सब थोड़े से पंडित-मानी व्यक्तियों की ईग्नि है, आर्य जिसमें राजा जल रहा है, प्रजा जल रही है और वह समय भी आ गया है, जब समूचा श्रायवर्त अपने तरुण, बालकों, अनाथ और वृद्धों के साथ जल कर भस्म हो जायेगा । जिस प्रजा ने विद्रोह किया है, वह अन्न है,