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बाण भट्ट की आत्म-कथा

१८ बाण भइ की आत्मकथा जलि और पताक-मुद्राओं को सफल बनाने में पतली-रहरी अंगु- सय अद्भुत प्रभाव डालती हैं । सो मैंने निपुणिका को मंडली में आ जाने की अनुमति दे दी। मेरी मंडली की स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक सुखी थीं। बहुत छुटपन से ही मैं स्त्री का सम्मान करना जानता हूँ । साधारणतः जिन क्षियों को चंचल और कुलभ्रष्टा माना जाता है, उनमें एक देवी-शक्ति भी होती है, यह बात लोग भूल जाते हैं। मैं नहीं भूलता । मैं स्त्री-शरीर को देव-मन्दिर के समान पवित्र भानता हूँ। उस पर की गई अनुकूल टीकाओं को मैं सहन नहीं कर सकता। इसीलिए मैंने मंडली में ऐसे कठोर नियम बना रखे थे कि स्त्रियों की इच्छा के विरुद्ध उनसे कोई बोल तक नहीं सकता था । जनता में यह प्रसिद्ध था कि बाण भट्ट की नर्सकियाँ अवरोध में रहती हैं । पर इसका फल बहुत अच्छा हुआ था। जनता मेरी मंडली को प्यार करने लगी थी । निपुणिका को मैं धीरे-धीरे रंगभूमि पर उतारने लगा ; पर उसकी अनुज्ञा लिए बिना नहीं । एक दिन उज्जयिनी में मेरा ही लिखा हुआ एक प्रकरण अभि- नीत होने वाला था । उस दिन परमभट्टारक के उपस्थित होने की भी सम्भावना थी। मैंने शक्ति-भर श्रायोजन किया था। मैंने उस दिन अपने प्रधान अभिनेताओं को अपनी उत्तम कला दिखाने के लिए खूब उत्तेजित किया था। मन-ही-मन मेरी इच्छा थी कि पूर्ण आडम्बर के साथ अभिनय हो । हुआ भी ऐसा ही । महाकालनाथ की सध्य- अापत्रिका के बाद प्रेक्षागृह में लोग जमा होने लगे। नगरी के सभी सम्भ्रान्त नागरिक यथास्थान बैठ गए। नगाड़ा बज उठा और मैंने अाडम्बर के साथ पूर्व रंग की विधि का अनुष्ठान किया । गायक और वादक यथास्थान बैठ गए और नर्तकियों के नूपुर-झंकार के साथ ही वीणा, वेणु, सुरज और मृदंग भुखरित हो उठे। मैं अब अगरधर और अर्जरधर के साथ जर्जर-स्थापना के लिए रंगभूमि में